Savitri Temple Pushkar: राजस्थान के पुष्कर तीर्थ स्थल पर लोग दूर-दूर से दर्शन करने आते हैं। इस धार्मिक स्थल की गिनती देश के सबसे पुराने धार्मिक स्थलों में होती है। इस मंदिर को 18वीं शताब्दी में बनाया गया था और यह मंदिर विवाह, समृद्धि और उर्वरता की देवी माता सावित्री को समर्पित है। इस मंदिर की अनूठी वास्तुकला मां सावित्री के जीवन को दर्शाती है। यहां पर खूबसूरत नक्काशी और दीवार पेंटिंग बाजी देखने को मिलती हैं।
अखंड सुहाग का प्रतीक हैं मां सावित्री
माता सावित्री जगतपिता ब्रह्मा जी की पत्नी हैं। सावित्री जी को अखंड सुहाग का प्रतीक माना जाता है। सावित्री मंदिर रत्नागिरी पहाड़ी पर स्थित है, इसे सावित्री पर्वत के नाम से भी जाना जाता है। इस मंदिर का इतिहास लिखित में कहीं नहीं है, लेकिन इसका जीर्णोद्धार मारवाड़ के राजा अजीत सिंह ने कराया था। भाद्रपद की सप्तमी को मंदिर में जागरण कराया जाता है और अष्टमी को मेला लगता है। पश्चिम बंगाल के लोग सावित्री माता को कुलदेवी के रूप में मानते हैं।
क्या है कहानी
कहा जाता है कि एक बार ब्रह्मा जी ने एक यज्ञ के लिए अपनी पत्नी सावित्री को समय पर आने के लिए कहा था, ताकि वे शुभ मुहूर्त में यज्ञ खत्म कर सकें। माता सावित्री समय पर नहीं आ पाई, जिसके कारण ब्रह्मा जी ने सभी देवी- देवताओं के कहने पर गायत्री को प्रकट किया था और उनसे शादी कर ली थी। जब माता सावित्री वहां पहुंचीं तो वो ब्रह्मा जी की दूसरी पत्नी को देखकर नाराज हो गई। उन्होंने वहां मौजूद सभी देवी देवताओं को श्राप दिया। इसके बाद वे ब्रह्मा जी को पुष्कर मे इकलौता मंदिर होने का श्राप देकर इस पहाड़ी पर आकर बस गई। तब से माता यहीं पर रहती हैं।
यह मंदिर पहाड़ों पर स्थित है, इस मंदिर वाली पहाड़ी को मिलाकर यहां नौ पहाड़ियां हैं। ये पहाड़ियां हिंदू राशि चक्र प्रणाली के नौ ग्रहों का प्रतिनिधित्व करती हैं। सावित्री पहाड़ पर सावित्री मंदिर बना हुआ है। मंदिर तक पहुंचने के लिए सीढ़ियों की मदद ली जा सकती है, ये ज्यादा कठिन नहीं है। फिर भी अगर आप पहाड़ियां नहीं चढ़ना चाहते हैं तो रोप-वे की मदद से यहां पर पहुंच सकते हैं।
मंदिर परिसर में बंदरों का आतंक
इस मंदिर में बहुत सारे बंदर देखने को मिलते हैं। ये लोगों से खाने- पीने का समान छीन लेते हैं। इसलिए यहां पर कई जगहों पर बंदरों से बचने का निर्देश भी लिखा है। बता दें कि सावित्री मंदिर से सूर्यास्त काफी सुंदर दिखता है। काफी लोग यहां सूर्यास्त देखने आते हैं। मंदिर जाने का सबसे अच्छा समय सर्दियों का होता है। इस समय मंदिर के आसपास की खूबसूरती और भी ज्यादा बढ़ जाती है।