Shreenathji Mandir: आपने देशभर में श्रीकृष्ण के अनेकों रूप और अवतार वाले मंदिर देखे होंगे जिसकी अपनी अलग खासियत और मान्यता है। राजस्थान के उदयपुर में भी श्री कृष्ण के अवतार का मंदिर है। हम बात कर रहे हैं श्रीनाथजी मंदिर की। श्रीनाथजी को श्रीकृष्ण का अवतार माना जाता है। इस मंदिर को नाथद्वारा में स्थापित किया गया था। इस जगह पर देश- विदेश से पर्यटक आते हैं।

कहां है श्रीनाथजी का मंदिर

यह मंदिर राजस्थान के अरावली की गोद में राजसमंद जिले मे स्थित नाथद्वारा में है। यहाँ के आसपास का क्षेत्र मनमोहक है। नाथद्वारा उदयपुर से लगभग 45 किलोमीटर की दूरी पर है। नाथद्वारा भगवान श्रीनाथजी के मंदिर के कारण देश-विदेश में प्रसिद्ध है। इस मंदिर का निर्माण सन् 1672 मे हुआ। 

छोटे बच्चे हैं श्रीनाथजी

इस मंदिर में भगवान कृष्ण सात साल के बच्चे के रूप में विराजमान हैं। इस मंदिर में जन्माष्टमी वाली रात ठीक 12 बजे 21 तोपों की सलामी दी जाती है। यहां पर दिन में आठ बार श्रीनाथ जी की पूजा की जाती है और 56 भोग लगाया जाता है। यहां भक्त भगवान श्रीनाथ के लिए खिलौने लाते हैं। या मंदिरों देश के अमीर मंदिरों में से एक है। इस मंदिर में श्रीनाथ जी की जो मूर्ति है वह सांवले रंग की है और उनकी ठोड़ी में हीरा सुशोभित है। यह हीरा औरंगजेब की मां ने भेंट किया था। कहा जाता है की जब औरंगजेब की मां को इस पूरी घटना के बारे में पता चला तो उन्होंने श्रीनाथ जी को हीरा भेंट किया। 

क्या है नाथद्वारा मंदिर का इतिहास

ये तो सब जानते होंगे कि मुस्लिम समुदाय में मूर्ति पूजा को गलत मानते हैं। इसी कारण मुगल बादशाह औरंगजेब भी मूर्ति पूजा का विरोधी था। उसने देश के हजारों मंदिरों को नष्ट किया था। इसी कड़ी मे औरंगजेब के सैनिक मथुरा जिले में स्थित श्रीनाथजी के मंदिर को तोड़ने लगे। इससे पहले कि श्रीनाथ जी की मूर्ति को कोई नुकसान होता मंदिर के पुजारी दामोदर दास बैरागी मूर्ति को बाहर निकल आए। उन्होंने मूर्ति को बैलगाड़ी में रखा और कई राजाओं से मंदिर बनवाने की विनती की लेकिन औरंगजेब के डर के कारण कोई भी ऐसा करने को तैयार नहीं हुआ। 

तब उन्हें राणा राजसिंह की याद आई, जो पहले ही औरंगजेब को चुनौती दे चुके थे। पुजारी ने उनके पास सूचना भिजवा दी। तब राणा राजसिंह ने मंदिर बनवाकर मूर्ति स्थापित कर दी और औरंगजेब को चुनौती दी कि उनके रहते हुए कोई भी श्रीनाथ जी की मूर्ति को नहीं छू सकता। मूर्ति तक पहुंचने से पहले औरंगजेब और उसके सिपाहियों को एक लाख राजपूतों से निपटना होगा।