Tijara Jain Temple: राजस्थान जैन तीर्थ स्थलों का प्रमुख केंद्र माना जाता है। यहां के मंदिरों की महिमा न केवल भारत में, बल्कि पूरे देश में जानी जाती है। राज्य के तिजारा शहर में स्थित चन्द्रप्रभ दिगम्बर जैन मंदिर पूरी दुनिया में प्रसिद्ध है। यह मंदिर जैन धर्म के 8वें तीर्थंकर चंद्रप्रभ दिगम्बर भगवान को समर्पित है। यहां उनकी 15 इंच ऊंची मूर्ति स्थापित की गई है।  

कैसे हुई मूर्ति की स्थापना 

माना जाता है इस जगह पर पहले कभी मिट्टी के ऊंचे-ऊंचे टीबे हुआ करते थे। साल 1953-54 में नगर पालिका की चेयरमैन शाल चन्द गप्ता के द्वारा मंदिर के आस-पास खुदाई का काम कराया गया था। इस दौरान मजदूरों को जमीन के नीचे कई तहखाने दिखाई दिए थे। तभी से इस स्थान को देवस्थान कहने जाने लगा। ऐसा भी कहा जाता है कि इन तहखानों के अलावा यहां दो गुप्त कमरें में मिले है। मंदिर के लेख के मुताबिक साल 1956 में नगीना की रहने वाली झब्बू राम और मिश्रीलाल ने फिर से इस जगह पर खुदाई कराई थी जिसमें 3 खंडित मूर्तियां मिली थी।

इसके बाद श्रीमती सरस्वती देवी ने अपने सपने के मुताबिक इस जगह फिर से खुदाई कराई थी। इस बार खुदाई के दौरान मजदूरों को 15 इंच ऊंची और 12 इंच चौड़ी सफेद मार्बल की एक मूर्ति मिली जिस पर चंद्रमा का निशान बना हुआ था। 

16 अगस्त को क्यों मनाया जाता है उत्सव

मिले तथ्यों के अनुसार पहली बार यह मूर्ति साल 1554 में वैशाख शुक्ल के तीसरे दिन स्थापित गई थी। कहा जा सकता है कि जब औरंगजेब ने सभी मूर्तियों को तोड़ने का आदेश जारी किया था तब जैन श्रद्धालुओं ने इसे मूर्ति को सभाल कर जमीन के नीचे दबा दिया होगा। हर साल 16 अगस्त को इस मूर्ति का प्रकट दिवस के रूप में मनाया जाता है। इस उत्सव में लाखों लोग शामिल होते हैं।