01 Nov 2024
राजस्थान के इस शहर में गुलाबी पत्थरों का ही प्रयोग क्यों किया जाता था?
मेहमाननवाजी का प्रतीक: 1876 में प्रिंस ऑफ वेल्स के आगमन के दौरान महाराजा सवाई राम सिंह ने शहर को गुलाबी रंग में रंगवाया था, जो मेहमाननवाजी का प्रतीक माना जाता है।
सांस्कृतिक परंपरा: राजस्थान में गुलाबी रंग को स्वागत और खुशी का प्रतीक माना जाता है। यह रंग उस समय से जयपुर की सांस्कृतिक पहचान का हिस्सा बन गया।
स्थानीय पत्थरों की उपलब्धता: जयपुर में आसानी से उपलब्ध स्थानीय गुलाबी बलुआ पत्थर का उपयोग निर्माण कार्यों में किया गया। यह सस्ता, टिकाऊ और सुंदर विकल्प था, जिससे शहर का सौंदर्य निखरा।
एकरूपता बनाए रखने के लिए: महाराजा ने गुलाबी रंग को अनिवार्य कर दिया था ताकि शहर में एकरूपता बनी रहे और सभी इमारतें एक ही शैली में नजर आएं।
शाही पहचान: गुलाबी रंग शाही और भव्यता का प्रतीक माना जाता था, और इसे अपनाने से शहर की इमारतें शाही और आकर्षक दिखती हैं।
पर्यटन आकर्षण: गुलाबी रंग ने जयपुर को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अलग पहचान दी है, जिससे इसे एक लोकप्रिय पर्यटन स्थल बनाने में मदद मिली।
हवा महल और सिटी पैलेस जैसे भवनों की शोभा: गुलाबी पत्थरों का उपयोग खासतौर पर हवा महल और सिटी पैलेस जैसी इमारतों की खूबसूरती को बढ़ाने के लिए किया गया, जो अब जयपुर की पहचान हैं।