28 Oct 2024
राजस्थान के इस मेले में महिलाएं क्यों पहनती हैं 1 -2 किलो सोना?
शहीदी मेले का ऐतिहासिक महत्व जोधपुर के खेजड़ली गांव में हर साल बिश्नोई समाज का शहीदी मेला भरता है, जो पर्यावरण संरक्षण के प्रति समाज की गहरी आस्था और बलिदान को दर्शाता है।
पारंपरिक गहनों की झलक मेले में बिश्नोई समाज की महिलाएं भारी-भरकम सोने के पारंपरिक गहने पहनकर आती हैं। इनमें सबसे खास गले में पहना जाने वाला आड है, जो अपने वजन और डिजाइन के लिए जाना जाता है।
खानदानी गहनों की अहमियत इन गहनों को बिश्नोई समाज की महिलाएं अपनी खानदानी निशानी के रूप में देखती हैं। यह पीढ़ियों से हस्तांतरित होते आए हैं और समाज की सांस्कृतिक धरोहर को दर्शाते हैं।
अमृता देवी का बलिदान खेजड़ली गांव में 280 साल पहले अमृता देवी ने पेड़ों की रक्षा के लिए अपने प्राणों का बलिदान दिया था। उनके इस अद्भुत साहस ने समाज में पर्यावरण संरक्षण के प्रति जागरूकता फैलाई।
भारी गहनों का आकर्षण महिलाओं के इन पारंपरिक और भारी गहनों को देखकर लोग आश्चर्यचकित रह जाते हैं। इन गहनों में बिश्नोई समाज की सांस्कृतिक परंपरा झलकती है।
363 पर्यावरण प्रेमियों का शहीद होना अमृता देवी के साथ उनके 363 साथी भी पेड़ों को बचाने के लिए शहीद हो गए थे। उनका बलिदान बिश्नोई समाज की पर्यावरण के प्रति निष्ठा का प्रतीक है।
पर्यावरण संरक्षण का संदेश यह मेला बिश्नोई समाज के साहसिक इतिहास और पर्यावरण संरक्षण के प्रति उनकी प्रतिबद्धता की याद दिलाता है। आज भी यह मेला पर्यावरण के प्रति आदर और प्रेम का संदेश देता है।