Johar Mela 2025 : राजस्थान का इतिहास अनगिनत कहानियों से भरा हुआ है। राजस्थान के राजाओं और रानियों की शौर्य और बलिदान की कहानी किसी से छुपी नहीं है। ऐसे ही राजस्थान के चित्तौड़गढ़ में हर साल राजपूताना वीरांगनाओं के बलिदान यानी कि जौहर मेले का आयोजन किया जाता है। रानी पद्मिनी और राजपूत रानियां द्वारा किए गए जौहर के याद के रूप में जौहर मेले का आयोजन किया जाता है।
मेले में जौहर श्रद्धांजलि समारोह का भी आयोजन किया जाता है। यह मेला राजपूताना वीरांगनाओं के बलिदान को याद दिलाता है। चित्तौड़गढ़ में एक बार नहीं बल्कि तीन बार जौहर हुए हैं। चित्तौड़गढ़ किले के तलहटी में 8 साल पहले एक मंदिर बनवाया गया है। मंदिर जौहर भवन में स्थित है। इस मंदिर को जौहर ज्योति मंदिर के नाम से जाना जाता है। मंदिर के अंदर रानी पद्मिनी,फूलकंवर मेड़तणी और राजमाता कर्णावती की मूर्ति स्थापित है।
जानें जौहर मेले का इतिहास
इस मेले का आयोजन 1948 से किया जा रहा है यानी कि 76 वर्ष हो गए हैं इस मेले को लगाते हुए। मेले का आयोजन चैट कृष्ण एकादशी को किया जाता है। 1948 में जौहर मेले की शुरुआत चित्तौड़गढ़ में हवन के रूप में हुई थी। इसके बाद से जौहर श्रद्धांजलि समारोह के नाम से जाना जाने लगा। जौहर श्रद्धांजलि समारोह का नाम बदलकर 1986 में जौहर मेला कर दिया गया। जौहर मेला तीन दिवसीय होता है। तीनों दिन अलग-अलग प्रकार के कार्यक्रम होते हैं।
वीरांगनाओं की याद में जलती है अखंड ज्योति
किले के तलहटी में स्थित जौहर भवन में जौहर मंदिर मौजूद है। इस मंदिर में तीन मूर्तियां स्थापित है। रानी पद्मिनी, फूलकंवर और राजमाता कर्णावती की मूर्ति स्थापित है। इन तीनों वीरांगनाओं की याद में अखंड ज्योति निरंतर जलाई जा रही है। जौहर ज्योति मंदिर पर्यटन के लिए भी जाना जाने लगा है। जहां हर साल हजारों की संख्या में पर्यटक आते हैं।
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