Holi Of Barood: होली का त्योहार रंग और गुलाल से रंगीन और खुशनुमा करने वाला त्यौहार है। चुकी होली को भारत के अलग-अलग राज्यों में कई तरह से मनाई जाती है। वहीं राजस्थान राज्य के उदयपुर जिले का एक अनोखा गांव जो अपनी कई खासियत की वजह से जाना जात है।
ये वही मनेर गांव है, जहां साइबेरियन प्रवासी पक्षी प्रवास करती है, जिसे देखने पर्यटकों की भीड़ सी लगती है और हो भी क्यों प्रकृति का यह खुबसूरत दृश्य किसे नहीं भाता है। लेकिन इस गांव की एक खास रिवाज और जिसे देखने हजारों की तादाद में भीड़ इकट्ठी होती है। यहां की 'बारूद होली' जो लोंगों के बीच काफी प्रचलित है।
क्यों मनाई जाती है बारूद की होली?
करीब 400 साल पहले मुगलों से हुए युद्ध में मेनारिया ब्राह्मण समाज के लोगों ने इन पर विजय प्राप्त किया था। इस युद्ध विजय के बाद मुगलों को गांव से खदेड़ दिया गया था। इस युद्ध में जीत के बाद मेवाड़ के महाराणा की ओर से मेनार को 17वें उमराव की उपाधि दी गई थी।
ग्रामीणों को इसके अलावा महाराणा की और से एक जाजम दी थी। ये जाजम आज भी गांव के लोगों के पास मौजूद है। इस जाजम का उपयोग बारूद की होली के प्रारम्भ में सभी के इकठ्ठे होने पर किया जाता है।
इस होली में क्या होता है खास?
एक परम्परा के तौर पर आज भी इस होली को यहां के हजारों युवा पूरे उत्साह के साथ मनाते हैं। इस बारूद की होली में युवाओं का पहनावा एक क्षत्रिय योद्धा की तरह होता है। इस होली का आयोजन शाम के वक्त होता है जो कि देर रात तक चलती है।
यह त्योहार मनाने के दौरान यहां के युवक ढोल नगाड़ों की थाप पर एक हाथ में खांडा और दूसरे हाथ में तलवार लेकर नृत्य करते हैं। जिसके बाद तोप से गोले दागते हैं,फिर बंदूकों से एक के बाद एक सैकड़ों हवाई फायर करते हैं। वहीं पटाखों की गर्जना के बीच तलवारों की कंकण से यहां का माहौल युद्ध जैसा बना देती है। इस होली को देखने की ललक लोगों में इतनी होती है कि वह दूर दूर से इस होली का लुत्फ उठाने आते हैं। इस त्यौहार को लेकर युवाओं का उत्साह देखने लायक होता है।