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Garvi Dance Tradition: राजस्थान की एक ऐसी पारंपरिक लोक नृत्य नाटक, जो मुख्य तौर पर भील समुदाय के लोगों के द्वारा ही निभायी जाती है। इस प्रथा को विशेष तौर पर राजस्थान के  बांसवाड़ा, डूंगरपुर  और उदयपुर के मेवाड़ के क्षेत्रो में निवास करने वाले समुदाय द्वारा निभाई जाती है।

Garvi Dance Tradition: राजस्थान में गवरी प्रथा की शुरुआत एक पारंपरिक अनुष्ठान से की जाती है, जिसमें गांव के देवी देवताओं की पूजा की जाती है। इस प्रथा में एक नृत्य प्रस्तुत किया जाता है, जिसका उद्देश्य गांव से बुराईयों को दूर करना व गांव के लोगों की भलाई के लिए देवी पार्वती से आशीर्वादलिया जाता हैं। गवरी प्रथा के इस नृत्य में पुरुष और महिलाएं दोनों शामिल होते हैं, लेकिन पुरुषों की भूमिका इसमें महिलों से अधिक होती हैं।

गवरी प्रथा की खासियत

राजस्थान के गवरी प्रथा की एक खासियत ये है कि इसमें नृत्य और नाटक का एक बेहतरीन तरीके से मिल करके किया जाता है। इस नाटक और नृत्य के मेल में अलग अलग पात्र होते हैं, जो उनकी कथाओं और कहानियों को वहां के लोगों द्वारा प्रस्तुत किया जाता है। इस गवरी प्रथा के नाटक में  कलाकार देवी देवता, दूल्हा दुल्हन, राक्षस और जानवरों के किरादारो को बखूबी से निभाते हैं। जिसमें वहां हर एक पात्र का अपना एक महत्व होता है, जो अपने किरदारों की प्रस्तुति को बड़े आनंद और मस्ती के साथ निभाते हैं।  

गवरी प्रथा में पारंपरिक वाद्य यंत्र पर गीत 

राजस्थान के गवरी प्रथा में  कलाकारों द्वारा कई प्रकार के वाद्य यंत्रों को बजाया जाता है, जैसे ढोल, बांसुरी और मांदल। जिसकी धुन के साथ गीत गाकर कलाकार नृत्य करते हैं, गवरी नृत्य में गीतों का बहुत महत्व है, क्योंकि इन गीतों के माध्यम से ही यहां के लोगों द्वारा कहानियों और धार्मिक कथाओं की प्रस्तुति की जाती है।

गवरा प्रथा की मान्यता 

इस प्रथा की खास बात यह है कि इस समुदाय के लोग 40 दिनों तक का सांसारिक जीवन को त्यागकर हरी सब्जियों का सेवन छोड़ देते है व मादक पदार्थों का सेवन भी उनके द्वारा नहीं किया जाता। समुदाय के लोगों की मान्यता है कि भगवान शिव और गोरा माता सवा महीने तक धरती में रखते हैं इसलिए यहां के नाटक प्रस्तुत करने वाले कलाकार मंदिरों में नीचे सोते हैं।

इन दिनों में कलाकार आस पास के गांवों में जाकर अपनी प्रस्तुति देते हैं। इस प्रथा के निभाने के दौरान वे कलाकार अपने परिवार से दूर रहते हैं और इस प्रथा से सम्बंधित नियमों का पालन करते हैं। गवरी प्रथा के नृत्य के माध्यम से भील समुदाय में उनकी परंपराएं, संस्कृति और धार्मिक विश्वास प्रकट किया जाता है।

राजस्थान में अब इस गवरी प्रथा के नृत्य को न केवल भील समुदाय बल्कि राजस्थान के समस्त क्षेत्रों में मान्यता मिल गई है। ये गवरी नृत्य धार्मिक और सांस्कृतिक धरोहर के साथ राजस्थान की समृद्ध लोककला का अनूठा उदाहरण भी है। गवरी नृत्य ने अपने अनोखे अंदाज के कारण राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी पहचान बनाई ली है। जो राजस्थान की लोक संस्कृति और परंपराओं की झलक को दर्शाता हैं।

गवरी प्रथा में सामाजिक संदेश

राजस्थान के भीलों द्वारा निभाई जाने वाली ये गवरी प्रथा मनोरंजन के साथ सामाजिक संदेश का भी माध्यम हैं। इस गवरी प्रथा में नृत्य और नाटक से समाज की समस्याओं को लोगों के सामने उजागर किया जाता है और उनके समाधान के लिए प्रयासों को भी दर्शाया जाता हैं। इसलिए ये गवरी नृत्य राजस्थान की संस्कृति और परंपराओं का एक अभिन्न अंग है, जिसके संरक्षण को बनाए रखना अति आवश्यक है, क्योंकि ये राजस्थान की धरोवर है।

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