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Rajasthan Famous Festival: गणगौर राजस्थान का एक ऐसा त्यौहार है, जो केवल राजस्थान में ही मनाया जाता हैं। महिलाओं द्वारा अपने अलग तरीकों से मनाने के कारण यह त्योहार काफी प्रचलित है। चलिए बताते हैं इसे मनाने का तरीका।

Rajasthan Famous Festival: राजस्थान कुछ खास त्यौहारों की वजह से भी काफी प्रसिद्ध है, ऐसे त्योहार जो सिर्फ राजस्थान में ही मनाया जाता है। ये त्यौहार ही यहां की धरोवर है, जो इसे एक अलग पहचान प्रदान करती है। उन्हीं त्यौहारो में से एक त्यौहार गणगौर है, जो विश्व भर में प्रसिद्ध है।

गणगौर को मनाने का कारण

राजस्थान के इस गणगौर त्यौहार को मनाने का कारण लोगों द्वारा ये माना जाता है कि इस दिन मां पार्वती ने अपनी उंगली से रक्त निकालकर महिलाओं को सुहाग में बांटा था। इसलिए इस दिन यहां की महिलायें अपने पति की लम्बी आयु की कामना के इस दिन व्रत रखती है।  

कब मनाते हैं गणगौर त्यौहार

राजस्थान का ये गणगौर त्यौहार होलिका दहन के दूसरे दिन चैत्र कृष्ण प्रतिपदा से चैत्र शुक्ल तृतीया तक, 16 दिनों तक मनाया जाता है। वैसे तो गणगौर त्यौहार मार्च-अप्रैल महीने अर्थात तीसरे- चौथे महिने में आता है, लेकिन हिंदू कैलेंडर के अनुसार ये त्यौहार पहले महीना में आता हैं। जिसे राजस्थान की महिलाओं द्वारा बड़ी धूम धाम से मनाया जाता हैं।

गणगौर को मनाने का तरीका

गणगौर राजस्थान का एक ऐसा त्यौहार जो पूरे 16 दिनों तक चलता है, इसको होलिका दहन के दूसरे दिन मनाया जाता है। जिसमें सुबह के समय आस-पास की बहने बेटियां होलिका दहन में से राख को लेकर व पानी से भरे तांबे के लोटे हरी घास उसके घर जाती है, जिसकी अभी हाल फिलहाल में शादी हुई है। उस राख मे पानी डाल उसके छोटे- छोटे गोले बनाए जाते हैं फिर उन राख से बने गोले को एक लकड़ी के पाटे पर (बैठने के लिए इस्तेमाल होने वाली पीढ़ा) रखकर पूजा जाता है। 

इसमें गणगौर के गीत गाते हुए हरी घास से पानी के छीटे मारकर पूजा की जाती है, जिसमें घर की छत की दीवार पर काजल, महंदी व सिंदूर के तिलक लगाए जाते हैं। इसके 4-5 दिन बाद सभी लड़किया इकट्ठा होकर गणगौर बनाने के लिए मिट्टी लाती है, फिर उनका घर पर नाचते गाते स्वागत किया जाता है, फिर ही उनकी मिट्टी से दो आकृतियां बनाई जाती है, जिसको ईसर और गौरा के नाम से जाना जाता है।

राजस्थान को कई जगहों पर तो इस दिन को मनाने के लिए शराब की मनवार भी की जाती हैं। जिसमें केवल लड़कियां ही होती है। इसमे इनके द्वारा नाटक भी किया जाता है लेकिन ये सब केवल एक आनंद लेने के तरीके है, जिनकी परंपराओं से कोई लेना नहीं हैं।

16 वें दिन की समाप्ति

राजस्थान के 16वें दिन मिट्टी से बनी गणगौर को दुल्हे और दूल्हन की तरह सजाकर उनको आटे- गुड़ से बने गुड़ले का भोग लगाया जाता है और उन गुड़ले को लड़कियां एक- दूसरे को आपस में खिलाती है। सभी लड़कियां इस दिन राजपूती पारंपरिक पोशाके पहनकर गणगौर को उनकी रीति रिवाजो के आधार पर किसी कुंड, कुए या नदी में विसर्जित करती है और सुख समृदि की कामना करके इस त्यौहार की समाप्ति करती हैं।  

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