Kota Coaching Culture: एक समय था जब कोटा को पढाई का धाम माना जाता था। 90 के दशक के समय शुरू हुआ कोटा कोचिंग का दौर आज एक बिजनेस का अड्डा बनकर रह गया है। साल 2000 आते-आते देश के विभिन्न राज्यों से बच्चें कोटा पहुंचने लगे थे और सफल भी हो रहे थे। ऐसे में कोचिंग क्षेत्र में अच्छा पैसा बनने लगा। धिरे-धिरे कर पैसे की ये लालच कब बच्चों के भविष्य को खा गई पता ही नहीं चला। यह कहना बुरा नहीं होगा कि अवांछित स्वतंत्रता ने कोटा को अर्श से फर्श पर ला दिया है।
व्यावसायिकता का घतरनाक कल्चर
पैसे ने लोगों को इतना अंधा कर दिया कि आज कोचिंग संस्थानों को केवल अपनी मार्केटिंग से मतलब है। इन कोचिंग सेंटर में तीन डिपार्टमेंट्स काम करते है। पहला कॉल सेंटर जो बच्चों को फोन कर अपने संस्थान में एडमिशन दिलाते है। दूसरा एसोसिएट-मार्केटिंग जिसका काम केवल अपने कोचिंग सेंटर का प्रचार करना है। तीसरा है रिजल्ट-मैनेजिंग डिपार्टमेंट जो सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण है।
विद्यार्थियों की सुविधाएं बनी प्राथमिकता
एक समय पहले जहां बच्चों के लिए पढ़ाई अधिक महत्वपूर्ण थी वही आज के समय में बच्चों की सुख सविधाएं प्राथमिकता बन गई है। हॉस्टल रूम में रेफ्रिजरेटर, वॉशरूम में गीज़र जरूरी हो गए है, एयर कंडीशनर और टेबल-कुर्सी ने भी अपना महत्व समय के साथ खो दिया है।
इसके अलावा दिमागी प्रेशर के नाम पर घूमने फिरने की स्वतंत्रता दी जाने लगी, ऑनलाइन मॉक टेस्ट और डाउट सॉल्विंग के नाम पर विद्यार्थियों के घर से मजबूरन महंगे फोन मंगवाएं गए। कक्षाओं में मोबाइल फोन ले जाना, व्हाइट ग्रीन बोर्ड से सीधे फोटो लेना बच्चों की आदत हो गई ।
स्वतंत्रता पाने छोटे शहरों से आते है कोटा
धिरे-धिरे कोटा शहर उन छात्रों से भरने लगा जिनको अपने छोटे शहरों में ना तो आजादी मिल रही थी और ना ही मौज मस्ती करने के लिए जगह। ऐसे छात्रों की बढ़ती संख्या से शिक्षा क्षेत्र में असफलता का नया दौर दौर शुरू हो गया।
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