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Manganiyar of Rajasthan: क्या आप जानते हैं कि राजस्थान के इस मुस्लिम समुदाय ने हमें "घूमर" और "थर्की छोकरो" जैसे कुछ बेहतरीन गाने दिए हैं। राजस्थान के मांगणियार सदियों से राजाओं के लिए गाते रहे हैं।

Manganiyar of Rajasthan: राजस्थान की मिट्टी ने हमेशा से संगीत की समृद्ध परंपरा को सजाया है और मंगणियार समुदाय इसका एक अहम हिस्सा है। सदियों से इस मुस्लिम समुदाय ने अपने सुरों से राजाओं और रियासतों के दिल जीत लिए हैं। आज ये संगीतकार न केवल राजस्थान, बल्कि पूरे देश और दुनिया में अपनी धुनों के लिए पहचाने जाते हैं। मंगणियार बच्चों को जब से बोलना आता है, उन्हें संगीत की परंपरा सिखाई जाती है। ये संगीत उनके जीवन का अभिन्न हिस्सा है।

गानों में झलकता मंगणियारों का अनोखा संगीत

मंगणियार समुदाय के गाने गहरी सांस्कृतिक जड़ें रखते हैं। इनके कई गाने बॉलीवुड में भी खास पहचान बना चुके हैं। “घूमर” और “ठरकी छोकरो” जैसे गाने सिर्फ गाने नहीं, बल्कि राजस्थान की धरोहर हैं। घूमर, जो राजपूतों के शाही नृत्य को दर्शाता है, मंगणियारों की आवाज में और भी खास बन जाता है। “ठरकी छोकरो”, फिल्म पीके का एक मशहूर गाना है, जिसमें मंगणियार संगीतकारों का योगदान इसे और खास बनाता है। 

संगीत सीखने की परंपरा

मंगणियार परिवारों में संगीत की तालीम बचपन से शुरू हो जाती है। यहां के बच्चों को बहुत ही कम उम्र में लोकगीतों और वाद्य यंत्रों का ज्ञान दे दिया जाता है। कहते हैं कि इन बच्चों के रोने की ध्वनि भी एक मधुरता लिए होती है। “हनीकरक बापू” और “धनक” जैसी फिल्मों में मंगणियार संगीत की झलक देखने को मिलती है, जो इनकी विशेषता और हुनर को दर्शाता है।

खड़ताल: अनोखा वाद्य यंत्र

मंगणियार समुदाय अपने साथ कई पारंपरिक वाद्य यंत्रों की परंपरा भी समेटे हुए है। इनमें सबसे खास है खड़ताल। लकड़ी से बना यह वाद्य यंत्र बड़े ही अनोखे तरीके से बजाया जाता है। खड़ताल को उंगलियों में फँसाकर इसे बजाया जाता है और इसकी धुन लोगों के मन को मोह लेती है। इसके अलावा, कामायचा, मंजीरा, ढोलक, और सारंगी भी उनके प्रमुख वाद्य यंत्रों में आते हैं, जिनका इस्तेमाल वे विभिन्न अवसरों पर करते हैं।

राजाओं से लेकर आम लोगों तक का मनोरंजन

पहले मंगणियारों का संगीत शाही दरबारों में बजता था और राजाओं के लिए गाया जाता था। लेकिन समय के साथ, इनका संगीत आम लोगों तक भी पहुंचा। ये अपने गानों में राजस्थान के लोक जीवन, प्रेम, उत्सव और वीरता को दर्शाते हैं। मंगणियारों का संगीत विशेष अवसरों जैसे शादियों, मेलों, त्योहारों पर गूंजता है, और इनकी आवाज हर समारोह में जान डाल देती है।

मंगणियारों का वैश्विक प्रभाव

आज मंगणियार न केवल भारत में, बल्कि विदेशों में भी अपनी कला का प्रदर्शन कर रहे हैं। ये लोग अपने संगीत की ताकत से दुनियाभर में राजस्थान की संस्कृति का प्रचार-प्रसार कर रहे हैं। मंगणियारों ने दुनिया भर में कई नामी म्यूजिक फेस्टिवल्स में प्रदर्शन किया है, और इनकी कला को हर जगह सराहा गया है। इनकी प्रस्तुति देखने के लिए दूर-दूर से लोग आते हैं और इनके संगीत की अनोखी जादूगरी में खो जाते हैं।

मंगणियार संगीत: एक धरोहर जो सहेजनी है

मंगणियार संगीत राजस्थान का एक अनमोल खजाना है। यह संगीत हमें सिर्फ मनोरंजन नहीं देता, बल्कि राजस्थान की संस्कृति, वहां के लोक जीवन और इतिहास से भी जोड़ता है। आधुनिकता के इस दौर में इस कला को सहेजना और इसे आगे बढ़ाना हमारी जिम्मेदारी है। मंगणियार समुदाय अपनी परंपरा और संस्कृति को पीढ़ी दर पीढ़ी सहेज रहा है और हमें उनकी इस अनमोल धरोहर का सम्मान करना चाहिए। 

मंगणियार समुदाय के सुर और उनकी प्रस्तुतियां राजस्थान की मिट्टी की खुशबू, वहां की रंगीन परंपराओं और अमूल्य संस्कृति को दर्शाती हैं। उनका संगीत सिर्फ सुनने की चीज नहीं, बल्कि दिल को महसूस करने वाली धुनों का सफर है।

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