Rajasthan Special Song: हर जगह होली के गीत अलग-अलग तरीके से गाए जाते हैं। लेकिन क्या आपने कभी होली के "हल्ला और ख्याल" सुना है? आप सोच रहे होंगे कि आखिर ये होली के हल्ला और ख्याल है क्या? इस लेख में हम आपको इसके बारे में बताएंगे।
ब्रजमंडल से मिलती-जुलती संस्कृति रखने वाले राजस्थान के करौली में होली गायन की एक पुरानी परंपरा है। यहां कई मशहूर गायक और कलाकार हुए हैं, जिन्होंने करौली के होली गायन को दिल्ली तक पहुंचाया। करौली में कई सालों पहले ये हल्ला और ख्याल होली से एक महीने पहले ही शुरू हो जाते थे। यहां के कई राजा-महाराजा भी इन हल्ला और ख्यालों को सुनना पसंद करते थे।
दिल्ली तक छोड़ी छाप
आम लोगों में भी होली के हल्ला और ख्याल सुनने का बहुत उत्साह होता था, खासकर धार्मिक नगरी करौली में। करौली में गाए जाने वाले होली के हल्ला और ख्यालों की लोकप्रियता इतनी बढ़ गई थी कि उनकी धूम दिल्ली के आकाशवाणी केंद्र (आल इंडिया रेडियो) तक पहुंच गई थी।
क्या हैं ये होली के हल्ला और ख्याल?
होली के हल्ला और ख्याल में सभी धार्मिक कथाएं होती हैं, जिन्हें कवि अपने तरीके से लोकगीत बनाते हैं। इन धार्मिक कथाओं को एक साथ बांधकर लोगों को गाने के रूप में सुनाया जाता है, जिसे लोकगीत भी कहा जाता है। होली के हल्ला और ख्याल को सामूहिक रूप से गाया जाता है। इन्हें गाने के लिए 10 से 20 गायक चाहिए होते हैं, 10-20 लोग मिलकर ही इसे अच्छे से गा पाते हैं। इसमें गाजे-बाजे, ढोलक और चंग की थाप के साथ जोर-जोर से किलकारियां लगाई जाती हैं।
राजा-महाराजा भी थे दीवाने
करौली रियासत के राजा भौमपाल से लेकर गणेश पाल तक, सभी होली के हल्ला और ख्यालों के बहुत बड़े प्रशंसक थे। पहले करौली में इन हल्ला और ख्यालों को गाने वाली कई टीमें हुआ करती थीं। राजशाही के समय से लेकर अब तक करौली में ये हल्ला के ख्याल चलते आ रहे हैं। लेकिन अब हल्ला के ख्याल गाने वाले मशहूर लोग और उनकी टीमें बिखर गई हैं। जानकारी के अनुसार, करौली में हल्ला के ख्याल गाने वाले आधे से ज्यादा कलाकार अब इस दुनिया में नहीं हैं। पहले यहां हल्ला के ख्याल गाने वाली चार प्रसिद्ध पार्टियां थीं, जिनकी ख्याति दूर-दूर तक फैली हुई थी।