Pichhwai Art: राजस्थान की प्राचीन और अनोखी कलाओं में एक पिछवाई कला नाथद्वारा शैली में तैयार की गई, इस कला को पिछले 350 सालों से लगातार यहां के कलाकारों ने इसे सहजकर रखा है और पीढ़ी दर पीढ़ी बढ़ाते आ रहे है।
श्रीनाथजी प्रभु की हवेली में हर साल कलाकार वल्लभ सम्प्रदाय की प्रधान पीठ द्वारा इस कला पर अलौकिक उत्सव और मनोरथ का भाव दर्शाया जाता है, इस कला को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी पहचान मिल चुकी है। पिछवाई कला के कारीगरों को कई बार अंतरराष्ट्रीय और राष्ट्रीय स्तर पर पुरस्कारों से भी नवाजा जा चुका है।
पिछवाई कला के संरक्षण के द्वारा अंबानी परिवार ने उठाए कदम
लुप्त होती जा रही पिछवाई कला के सरंक्षण के लिए अंबानी परिवार द्वारा कार्यशाला का भी आयोजन किया गया है। नाथद्वारा शैली की लुप्त होती जा रही पिछवाई कला को सहजने के लिए रिलायंस फाउंडेशन की नीता अंबानी ने साल 2016 अहमदाबाद में कार्यशाला का आयोजन किया गया था। इस दौरान अंबानी ने पिछवाई कला की पेंटिंग को 50 लाख रूपए में खरीदा था।
इस प्रक्रिया से तैयार की जाती यह कला
पिछवाई कला को तैयार करने के लिए सबसे पहले एक बड़े कपड़े पर आर्टिस्ट से कडप लगाकर उसे सुखाया जाता है, इसके बाद इसपर पेंटिंग की जाती है। इस पेंटिंग में कई प्रकार के प्राकृतित रंगों का इस्तेमाल किया जाता है, इस कला की खास बात यह है कि इसमें शुद्ध 24 कैरेट सोने-चांदी का भी उपयोग किया जाता है।
कई अलग-अलग विषयों पर कलाकारी की जाती है, इस कला को तैयार करने में लगभग 15 से 20 का समय लगता है। पिछवाई बनने के बाद आखिर में इस पर घिसाई की जाती है, जिसके बाद सोना-चांदी उभरकर दिखाई देता है और इस कला में चमक बढ़ जाती है। इसके लिए दो से तीन कलाकार मिलकर कला को तैयार करते है। विभिन्न आकार में बनाई गई इस कला को ठाकुरजी के पिछे लगाते है, कला प्रेमी इस कला को लाखों रूपए में खरीदते है।
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