Adhai Din Ka Jhonpra Made By : राजस्थान के अजमेर आपको कई प्रचीन और ऐतिहासिक मस्जिदें देखने को मिल जाएंगी। वर्तमान में इन्हीं मस्जिदों में से एक है अढ़ाई दिन का झोंपड़ा। भले अढ़ाई दिन का झोंपड़ा वर्तमान में अजमेर की सबसे पुरानी मस्जिद है। लेकिन इसको लेकर इतिहासकारों के मतों में सदैव भिन्नता रही है। क्योंकि इस इमारत में हिंदू और जैन वास्तुकला की झलक देखने को मिलती है। स्थानीय लोगों और इतिहासकारों के मुताबिक कि यहां पर जैन मंदिर और संस्कृत विद्यालय था लेकिन सल्तनत वंश के दौर में इसे मस्जिद के रूप में बदला गया था।
“अढ़ाई दिन का झोंपड़ा” का इतिहास
“अढ़ाई दिन का झोंपड़ा” अफगानी सेनापति मोहम्मद गोरी के आदेश पर 1192 ई में कुतुबुद्दीन ऐबक द्वारा कब्जाई गई थी। ऐसा माना जाता है कि मस्जिद से पहले इस स्थान पर संस्कृत विद्धालय और एक मंदिर था, लेकिन इसे बाद में तोड़कर मस्जिद बना दिया गया। इसके प्रमाण मस्जिद के द्वार के बायीं ओर बने संगमरमर एक शिलालेख में मिलते हैं। इस शिलालेख में संस्कृत विद्धालय का जिक्र मिलता है।
अढ़ाई दिन का झोंपड़ा के स्थान पर शुरुआती समय में पहले एक जैन मंदिर था जिसे 6वीं शताब्दी में सेठ वीरमदेव काला के द्वारा बनाया गया था। इसके बाद चौहान राजवंश के दौरान एक संस्कृत कॉलेज हुआ करता था, जिसे मुहम्मद गोरी और कुतुबुद्दीन ऐबक के द्वारा नष्ट कर दिया गया था। इसके बाद इस कॉलेज को मस्जिद का रूप दे दिया गया था।
क्यों कहते है अढ़ाई दिन का झोंपड़ा?
जितना रोचक अढ़ाई दिन का झोंपड़ा का इतिहास है उतना ही रोचक इसके नाम के पीछे का कारण है। मुहम्मद गोरी ने कुतुबुद्दीन ऐबक को 60 घंटे के अंदर मस्जिद बनाने का आदेश दिया। इसके बाद ढाई दिन में पूरी इमारत को तोड़कर मस्जिद बनाना आसान नहीं था। इसलिए इस इमारत में बदलाव करके इसे नमाज पढ़ने के लिए तैयार कर दिया गया था। इसी कारण से इसे अढ़ाई दिन का झोंपड़ा नाम से जाना जाता है।
वर्तमान में जर्जर हालत में है अढ़ाई दिन का झोंपड़ा
घनी मुस्लिम आबादी और तंग गलियों के बीच से होकर अढ़ाई दिन का झोंपड़ा का रास्ता जाता है। एक बार को आपको यकीन ही नहीं होगा कि आप किसी ऐतिहासिक इमारत को देखने के लिए जा रहे हैं। इस इमारत को अंदर से देखने का कोई किराया नहीं लगता है। अढ़ाई दिन का झोंपड़ा वर्तमान में पूरी तरह से जर्जर हो चुका है।
अजमेर के डिप्टी मेयर नीरज जैन ने सरकार से मांग भी की है कि इस विवादित जगह का सर्वे कराया जाए। इस जगह पर जैन मंदिर था और क्षतिग्रस्त मूर्तियों के अवशेष भी मिले हैं। यह जगह पहले सरस्वती कंठभरण महाविद्यालय थी। पहले भी इस जगह के सर्वे और संरक्षण की मांग की गई थी।