rajasthanone Logo
Bikaner Ka Matka: मटकियों का निर्माण एक बारीक प्रक्रिया है, जिसमें कुशल कारीगर अपनी कला का प्रदर्शन करते हैं। नापासर में लगभग 15 से 20 घरों में इस पारंपरिक कार्य को किया जाता है।

Bikaner Ka Matka: चाक पर मिट्टी से बनाकर थापी से तैयार की जाने वाली मटकियां नापासर कस्बे का एक खूबसूरत दृश्य हैं, जो बीकानेर से लगभग 30 किलोमीटर दूर स्थित है। यहां बनाई जाने वाली इन मटकियों की मांग न केवल बीकानेर, बल्कि राज्य के कई अन्य जिलों में भी होती है।
ऑफ सीजन के दौरान बड़ी संख्या में मटकियां बनाई जाती हैं, जिन्हें गर्मी के मौसम में बेचा जाता है।

स्थानीय लोग बताते हैं कि बाहर से आने वाले लोग भी यहां की मटकियों के लिए खासतौर पर मांग करते हैं, क्योंकि इन मटकी में पानी ठंडा रहता है। नापासर में लगभग 15 से 20 घरों में मटकियों का निर्माण किया जा रहा है, और यहां करीब 4 से 5 प्रकार की मटकियां तैयार की जाती हैं।

70 साल पुरानी कला 

व्यापारी इन मटकियों को अन्य स्थानों पर भी भेजते हैं। यहां से सबसे अधिक मटकियां राजगढ़, चूरू, फतेहपुर, झुंझुनूं और सीकर जिलों में भेजी जाती हैं। इस काम में उनकी चौथी पीढ़ी लगी हुई है और वे पिछले 70 सालों से मटकियां बनाने का कार्य कर रहे हैं। अब उनका छोटा बेटा भी पढ़ाई के साथ-साथ इस काम में शामिल हो गया है।

ऐसे तैयार होती है मटकियां

मटकियां बनाने वाले कारीगरों का कहना है कि नापासर में लगभग 15 से 20 घरों में यह कार्य किया जाता है। मटकियों के निर्माण के लिए तीन प्रकार की मिट्टी—कोलायत, लखासर और नापासर—को मिलाकर चाक पर रखा जाता है और उसे आकार दिया जाता है। इसके बाद, उसे थापी से थापा जाता है और फिर 2 से 3 दिन के लिए सूखने के लिए मिट्टी में रखा जाता है। इसके बाद, मटकियों को आग में पकाया जाता है। एक मटकी को पूरी तरह तैयार होने में 3 से 4 दिन लगते हैं।

यहां मटकियों की कीमतें इस प्रकार हैं:
•    छोटी मटकी: 35 से 40 रुपये
•    मीडियम मटकी: 70 से 80 रुपये
•    बड़ी मटकी: 160 से 190 रुपये

5379487