Jaipur Blue Pottery: राजस्थान का इतिहास काफी स्वर्णिम माना जाता है। राजस्थान संस्कृति एवं ऐतिहासिक इमारतों के लिए प्रसिद्ध है। राजस्थान में प्राचीन काल से हस्तशिल्प के क्षेत्र में भी प्रचलन में रहा हैं। भारत हस्तशिल्प से निर्मित केंद्र माना जाता है। राजस्थान के चमकते हुए नीले बर्तन, मीनाकारी यहां की शोभा बढ़ाते हैं।
राजस्थान की राजधानी जयपुर हाथों से बने पाॅटरी के लिए विश्व भर में विख्यात है। ब्लू पाॅटरी व्यवसाय के साथ राजस्थान की विरासत के प्रति सम्मान का प्रतीक हैं। ब्लू पाॅटरी यहां की धरोहर के प्रतीकों में से एक है। ब्लू पॉटरी जिसे जयपुर के पारंपरिक शिल्प के रूप में विश्व स्तर पर मान्यता प्राप्त है, ये ब्लू पाॅटरी तुर्को फारसी की है। ब्लू पॉटरी का नाम आकर्षक नीली डाई से आया है, जो कि मिट्टी के बर्तनों के कलर करने के लिए प्रयोग में आता है।
ब्लू पॉटरी की शुरुआत
ब्लू पॉटरी की शुरुआत मानसिंह प्रथम ने की था, लेकिन इस कला का विकास सवाई राम सिंह के समय में हुआ। दुर्गेश दोराया जो जयपुर ब्लू पॉटरी आर्ट सेंटर के मालिक व राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कार विजेता और मास्टर कारीगर अनिल दोराया के बेटे हैं। इनका परिवार कई पीढिय़ों से ब्लू पॉटरी का व्यवसाय संभाले हुए हैं। इसकी शुरुआत के लिए कई कथन हैं।
पहला ये है कि राजा सवाई राम सिंह दितीय ने पतंगबाजी में अछनेरा के दो भाईयों की पंतग काट दी थी, उनसे इसका कारण पूछा गया, तो उन्होंने बताया कि वे अपनी पतंग की तारों पर नीला कांच लगाता था, जिसका प्रयोग अक्सर अपने मिट्टी के बर्तनो के लिए करा करते थे।
कैसे अस्तित्व में आया ब्लू पॉटरी
राजा सवाई राम सिंह दितीय से प्रभावित होकर राजा ने उनको कला विद्यालय में अपनी इस कला को सिखाने के लिए आमंत्रित किया और इस तरह जयपुर में ब्लू पॉटरी की शुरुआत हुई। लेकिन कई और लोगों का कुछ और ही मानना है। बाकी लोगों का कहना है कि राजा सवाई राम सिहं ने अपने दो कुम्हारों को नीली मिट्टी के बर्तन की कला प्राप्त करने के लिए दिल्ली के कुम्हार के पास भेजा, जो इस ब्लू पॉटरी की कला को ईरान से सीख कर आए थे।
1868 में ये कुम्हार वापस जयपुर आ गए, जिसके बाद कला विद्यालय में इसका प्रशिक्षण करवाने लगे। उसके बाद पद्म श्री कृपाल सिंह और जापान के एक प्रशिक्षक को प्रधानाचार्य के रूप में नियुक्त किया। इसके बाद से ही पूरी तरह से ब्लू पॉटरी अस्तित्व में आया।
ब्लू पॉटरी बनाने की प्रकिया
नीली मिट्टी के बर्तन के लिए तांबा, कोबाल्ट के ऑक्साइड को प्रयोग में लाया जाता है। ब्लू पॉटरी की मोल्डिंग में अरेबिका, कांच, क्वार्ट्ज, गम, मुल्तानी मिट्टी को मिलाकर एक मिश्रण तैयार किया जाता है। इसके बाद कॉपर ऑक्साइड से हरे व सफेद रंग के कोबाल्ट ऑक्साइड से नीला रंग और पीला व भूरा रंगों से इन मिट्टी के बर्तनों को रंगा जाता है, फिर इसे गोल किया जाता है और मोटी चपाती के रूप में चपटा किया जाता है।
इसके बाद उसे सांचे में डाला जाता है, एवं सांचे से बाहर निकले हुए अतिरिक्त आए पदार्थ को चाकू की मदद से काट दिया जाता है और राख भर दी जाती है। बर्तनों को साफ करने तथा चमकाने के लिए उन्हें ,रेगमाल से रगड़ा जाता है। उसके बाद बर्तनों पर कारीगरों के द्वारा हाथ से डिजाइन बनाए जाते हैं, एवं गिलहरी के बाल से बने ब्रश से उस पर कलाकृति बनाई जाती है।
8 घंटे तक सुखाने से मिलती है मजबूती
डिजाइनिंग व पेंटिंग की प्रक्रिया के बाद गलेजिंग होती है, जिसमें गलास, बोरेक्स और लेड ऑक्साइड की आवश्यकता होती है। इसके बाद बर्तनों को भट्टे में डालकर 8 घंटे के लिए सुखाया जाता है। जिससे उसका तापमान 800 डिग्री सेंटिग्रेड तक पहुंच जाता है। उसके बाद ठंडा होने पर बर्तनों को निकाल लिया जाता है। इन सभी प्रकिया से गुजरते हुए ही ब्लू पॉटरी को आकर्षक बनाया जाता है।
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