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Lodrva Parasawanath Jain Temple: प्रतिमाओं की नक्काशी और शिल्पकला उत्कृष्ट है, जो जैन कला की समृद्धि को दर्शाती है। लोद्रवा का यह मंदिर पार्श्वनाथ की पूजा का महत्वपूर्ण केंद्र है और यहां आने वाले भक्त उनकी कृपा प्राप्त करने के लिए प्रार्थना करते हैं।

Lodrva Parasawanath Jain Temple: जैसलमेर में ऐतिहासिक और ऊंची इमारतें हैं। साथ ही जैसलमेर में एक विश्वप्रसिद्ध मंदिर भी है, जिसका नाम है लोद्रवा पाश्र्वनाथ जैन मंदिर। इस मंदिर की कुछ ऐसी चमत्कारी शक्तियां है, जिनके कारण इस मंदिर को व्यापक और अलग माना जाता है। यह मंदिर जैसलमेर से लोद्रवा गांव में स्थित है। इस गांव को राजस्थान की आर्थिक राजधानी के रूप में भी देखा जा सकता है। 

लोद्रवा मंदिर की मान्यता:

लोद्रवा मंदिर को पाश्र्वनाथ मंदिर इसलिए भी कहा जाता है क्योंकि इस मंदिर की सुरक्षा खुद नाग देवता करते हैं। यह मंदिर एक जैन मंदिर है। इसीलिए यह मंदिर जैन संप्रदाय के लोगों के लिए धार्मिक आस्था का प्रतीक बना हुआ है। कईं बार यहां की चमत्कारी शक्तियों के बारे में संदेह भी किया गया। लेकिन नाग देवता कईं सालों से मंदिर के अंदर ही रहकर उसकी रक्षा करते हैं।

मंदिर में रोज रात को नाग देवता के लिए दूध का कटोरा रखा जाता है और सुबह यह कटोरा बिल्कुल खाली मिलता है। यह भी मान्यता है कि नाग के दर्शन उन्हीं लोगों को जो भगवान के प्रिय होते हैं। अन्यथा नाथ देवता अपनी दिव्य शक्तियों से अदृश्य हो जाते हैं। कुछ लोगों का यह भी कहना है कि कारगिल में भी नाग देवता ने सैनिकों की सुरक्षा की थी। 

मंदिर का इतिहास: 

माना जाता है कि लोद्रवा गांव को राजपूतों ने बसाया था। जिन्हें रोद्रवा  कहा जाता था। यह गांव काक नदी के किनारे बस है और जैसलमेर से करीब 15 किलोमीटर दूर है। इसी गांव में लोद्रवा जैन मंदिर है और मंदिर की वास्तुकला बहुत ही सुंदर है। अगर आप कभी जैसलमेर जाएं तो इस गांव में अवश्य जाएं। आपको यहां की चमत्कारी शक्तिशाली और रचनात्मकता जरूर पसंद आएगी। यह गांव पहले के समय में खेती के जाना जाता था। जिससे यहां समृद्ध परिवार भी थे।

गुजरात के सोमनाथ पर आक्रमण करने वाले गौरी ने इस गांव को भी लूटा था। उस समय इस गांव के राजा भुज देव थे, जो कि गौरी से युद्ध के दौरान मृत्यु की बलि चढ़ गए। उनकी मृत्यु के बाद यहां से सभी मंदिरों को गौरी ने लूटा और गांव को नष्ट कर दिया था। विक्रम संवत1675 में जैन मंदिरों को दुबारा बनवाया गया। इनका पुनः निर्माण थारूशाह नामक एक व्यापारी ने करवाया था। पार्श्वनाथ की मूर्ति को लोद्रवा जैन मंदिर में फिर से रखा गया, लेकिन इस बार मूर्ति संगमरमर की बनवाई गई थी। जिस पर हीरे मोती जड़े हुए थे।

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