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राजस्थान, जो कि जाना जाता है अपने थार के रेगिस्तान के लिए। राजस्थान में नदी की बात आती है तो बहुत ही कम लोगों को पता होता है राजस्थान में नदी भी हैं। आज हम बात करेंगे, राजस्थान की लूनी और बाणगंगा नदी के बारे में।

भारत प्राचीन काल से ही नदियों का देश रहा है। गंगा नदी भारत की सबसे लंबी नदी है। जिसको सबसे पवित्र नदी भी कहा जाता है। गंगा नदी उत्तरप्रदेश, उत्तराखंड, बिहार राज्यों के लिए किसी वरदान से कम नहीं है और इसी प्रकार कईं नदियां राज्यों के लिए बहुत ही सहायक सिद्ध होती हैं। 

 

लूनी नदी:

राजस्थान की लूनी नदी राजस्थान के लिए किसी वरदान से कम नहीं है। इस नदी का उद्गम स्थान अजमेर में है। यह नदी नाग पहाड़ी से निकलती है और नागौर, जोधपुर, बाड़मेर, पाली और जालोर से होकर बहती है। बाद में यह नदी कच्छ के रण में विलीन हो जाती है। इसकी कुल लंबाई 495 किलोमीटर है। 

 

लूनी नदी के महत्वपूर्ण तथ्य:

​​​​​​ लूनी नदी को लवण्वती नदी के नाम से भी कईं लोग जानते हैं। यह नाम इसे इसलिए दिया गया है क्योंकि यह नदी बाड़मेर के रेगिस्तान से गुजरने के बाद खारी हो जाती है। बाड़मेर से पहले इसका पानी मीठा होता है। लेकिन बाड़मेड में इस नदी में नामक (लवण) के कण मिल जाते हैं। जिसके कारण इसका पानी खारा हो जाता है। 

लूनी नदी के आस पास का नजारा बहुत ही खूबसूरत होता है। जिसको देखने के लिए पर्यटक दूर-दूर से आते हैं। इस नदी के किनारे लोग कैंपिंग भी करने आते हैं। स्थानीय लोग इस नदी की पूजा भी करते हैं।

 

 बाणगंगा नदी:

बाणगंगा नदी भी राजस्थान में होकर बहती है। इसकी कुल लंबाई 380 किलोमीटर है। यह नदी जयपुर जिले की बैराठ की पहाड़ियों से निकलती है। यह नदी राजस्थान के जयपुर, दौसा और अजमेर से होकर बहती है। यह नदी भरतपुर की सीमा पर ही विलीन हो जाती है। इस नदी को रूण्डित नदी के नाम से भी जाना जाता है। बाणगंगा भरतपुर जिले में स्थित घना पक्षी राष्ट्रीय उद्यान को पानी प्रदान करती है। इतिहास में हुई बाबर और राणा सांगा की लड़ाई भी इसी नदी के किनारे लड़ी गई थी, जिसे खानवा की लड़ाई के नाम से जाना जाता है। 

 

बाणगंगा नदी की पौराणिक कथा:

बाणगंगा को अर्जुन की गंगा भी कहा जाता है। माना जाता है बाणगंगा का निर्माण महाभारत से समय के हुआ था। महाभारत के वीर अर्जुन ने अपने दिव्य अस्त्रों को शुद्ध करने के लिए बैराठ के समीप मैड के जंगल की धरती पर तीर चलाकर गंगा मां को आहुति दी थी। जिसके कारण तभी से इस नदी का नाम बाणगंगा पड़ गया। नदी के किनारे प्रत्येक वर्ष मेला भी आयोजित किया है। जिसमें लोग बाणगंगा के जल को सिर माथे लगाकर उसका आचमन करते है और मेले का लुत्फ उठाते हैं।

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