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Rajasthan Masak Been Baja: राजस्थान के प्राचीन वाद्य यंत्रों में 'मसक बीन बाजा' का नाम प्रमुखता से लिया जाता है। यह राजा-महाराजाओं के वाद्य यंत्र के रूप में प्रसिद्ध है। इसकी मधुर ध्वनि आज भी राजस्थान के कई इलाकों में सुनी जा सकती है।

Rajasthan Masak Been Baja: राजस्थान सिर्फ राजा-महाराजाओं की वीर गाथाओं और उनके किलों के लिए ही प्रसिद्ध नहीं है, बल्कि यहां के लोगों का संगीत से भी जुड़ाव रहा है। इसका पौराणिक इतिहास रहा है। आज भी राजस्थान के अधिकांश इलाकों में सैकड़ों साल पहले के वाद्य यंत्रों की मधुर ध्वनि सुनी जा सकती है।

बता दें कि इसे बजाने वाले वादक अपनी कला से लोगों को सैकड़ों साल पहले की पौराणिक सभ्यता का अहसास कराते हैं, जो अपने आप में अद्भुत और सराहनीय है। राजस्थान के पौराणिक वाद्य यंत्रों में 'मसक बीन बाजा' प्रसिद्ध रहा है। वादक इस वाद्य यंत्र को हाथ और मुंह की मदद से बजाते हैं। आज इस लेख में हम 'मसक बीन बाजा' के बारे में विस्तार से जानेंगे।

सैकड़ों वर्ष पुराना वाद्य यंत्र

मालूम हो कि जिस तरह बांसुरी को मुंह से फूंक मारकर बजाया जाता है, उसी तरह 'मसक बीन बाजा' बजाने के लिए वादक पहले इसे गले में पहनता है। इसके बाद हाथों और मुंह की मदद से हवा को एक थैली में इकट्ठा किया जाता है। फिर वादक अलग-अलग संगीत के हिसाब से धुन बजाता है।

जानकारों के मुताबिक, इस वाद्य यंत्र का इतिहास काफी पुराना है। बताया जाता है कि यह 400 साल से भी ज्यादा पुराना वाद्य यंत्र है। पहले इसे राजा-महाराजाओं के सांस्कृतिक कार्यक्रमों में प्रमुखता से बजाया जाता था। इसीलिए इसे अक्सर 'किलों की शान' कहा जाता रहा है।

लकड़ी से लेकर बकरी की खाल से करते हैं निर्माण

आपको बता दें कि संगीतकारों के अनुसार 'मसक बीन बाजा' बनाने में मोम, बांस और लकड़ी से लेकर बकरी की खाल तक सबका इस्तेमाल होता है। बैग ज्यादातर बकरी की खाल से बनाया जाता है। जिससे इस वाद्य यंत्र के बैग को मजबूती मिलती है और यह लंबे समय तक टिकाऊ भी रहता है।

मालूम हो कि बकरी की खाल को हवा के दबाव को समेटने के लिए मजबूत माना जाता है। हालांकि, संगीतकार बकरी की खाल से बने बैग पर एक खूबसूरत कपड़े का कवर चढ़ाते हैं और बांस या लकड़ी की बांसुरी को रंग दिया जाता है। इसके बाद यह वाद्य यंत्र और भी आकर्षक और खूबसूरत हो जाता है।

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