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Gavri Mewar: राजस्थान के मेवाड़ के आदिवासी समुदाय के लोगों द्वारा गवरी नामक प्रथा निभाई जाती है। इसमें लोग 40 दिनों तक अपने घर का त्याग करते है और इस दौरान केवल मंदिर में ही रहते है।

Gavri Mewar: भारत अपनी विविधतओं के लिए जाना जाता है। यहां के विभिन्न खानपान, वेशभूषा, मान्यताएं कुछ किलोमीटर के बाद बदलती रहती हैं। आज इस आर्टिकल में हम राजस्थान के मेवाड़ की एक धार्मिक मान्यता के बारें में चर्चा करेंगे। मेवाड़ की यह प्रथा काफी साल पुरानी है। इसे आदिवासी समुदाय के लोगों द्वारा निभाया जाता है, इसमें लोग भगवान शिव और पार्वती के अपार श्रद्धा को दर्शाते है।  

40 दिन करते है घर का त्याग 
इस प्रथा के अनुसार आदिवासी समुदाय के लोग को 40 दिनों तक अपने घर का त्याग करना होगा। इस दौरान वे ना तो घर आते है, ना ही हरी सब्जियों का सेवन करते है। इस 40 दिन तक मादक पदार्थों का भी सेवन करने पर रोक रहती है। उन्हें सिर्फ मंदिर में सोना होता है और भगवान शिव की आराधना करते है।  

गवरी के नाम से जानी जाती है यह प्रथा
गवरी नाम से प्रसिद्ध इस प्रथा में एक अनोखे प्रकार का लोक नृत्य किया जाता है। कई सालों से मेवाड़ में यह गवरी नृत्य किया जा रहा है। आदिवासी समुदाय के लोगों द्वारा कई सालों से गवरी प्रथा का निर्वहन किया जा रहा है। 

लोक नृत्य के माध्यम से सुनाई जाती है कहानी 
इस उत्सव के दौरान लोक नृत्य के माध्यम से विभिन्न कहानी के पिछे का एक सामाजिक संदेश दिया जाता है। इस नृत्य को करते समय लोगों अपने पैरों में ना तो चप्पल पहनते है और ना ही 40 दिनों तक नहाते है। इस दौरान वे हरी सब्जियां, मांस या किसी मादक पदार्थ का सेवन भी नहीं करते है और केवल एक टाइम ही खाना खाते है। 

पेश की जाती है भगवान शिव और भस्मासुर की कहानियां 
गवरी त्यौहार में लोग आठ से नौ विभिन्न कहानियां नाच और गाने के जरिए लोगों के सामने पेश करते है। इसमें ज्यादातर भगवान शिव और भस्मासुर की कहानियां दिखाई जाती है। अलग-अलग वेशभूषा और अनोखा मेकअप करके लोग नृत्य करते हुए सड़को पर दिखाई देते है।

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