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जवाहर कला केंद्र 32 साल पूरे होने के उपलक्ष में पारदर्शी लगी थी। इसमें 200 सालों से भी ज्यादा पुराने वाद्य यंत्र थी। ऐसे भी वाद्य यंत्र शामिल थे जिन्हें राजा महाराजाओं के दरबार में बजाया जाता था।

राजस्थान अपनी कला परंपरा और संस्कृति को आज भी संजोए हुए हैं। राजस्थान अपनी ऐतिहासिक चीजों के लिए भारत में सबसे ज्यादा प्रसिद्ध है। यहां की इमारत, नुक्कड़, हर गली, तालाब पोशाकों और खान पानी का कुछ न कुछ इतिहास रहा है। यहां के हर जिले की अपनी कुछ ना कुछ खासियत है। यहां कदम रखते ही आपको महसूस होगा कि आप किसी पुराने दौर में आ गए है। जब पुराने समय की बात हो ही रही है तो भला वाद्य यंत्र कैसे पीछे रह सकते है। जयपुर के जवाहर कला केंद्र प्रदर्शनी लगाई गई थी। जवाहर कला केंद्र 32 साल पूरे होने के उपलक्ष में पारदर्शी लगी थी। इसमें 200 सालों से भी ज्यादा पुराने वाद्य यंत्र थी। इस प्रदर्शनी में कुछ ऐसे भी वाद्य यंत्र शामिल थे जिन्हें राजा महाराजाओं के दरबार में बजाया जाता था। सबसे ख़ास बात ये है कि इन्हें फ्री में लोगों ने देखा।

200 सालों पुराने वाद्य यंत्र 

आपको बता दें राजस्थान के इस प्रदर्शनी में रखे वाद्य यंत्र है जो 200 सालों से भी अधिक पुराने हैं। इन वाद्य यंत्रों को लोगों ने पीढ़ी दर पीढ़ी बजाया हैं। जिसकी मधुर ध्वनि अनोखा सुकून देती थी। प्रदर्शनी में बांसवाड़ा से आए वाद्य यंत्र कलाकार खेमराज ढढोर बताते हैं कि वह खुद 17 वाद्य यंत्र बजाना जानते हैं। ऐसे अन्य कई कलाकार हैं जो एक से अधिक वाद्य यंत्र में निपुण हैं।

अब इन यंत्रों को बना पाना मुश्किल

पदर्शनी के एक युवक खेमराज ढिंढोर बताते हैं कि यहां तरह - तरह के वाद्य यंत्र रखे थे जिन्हें आज के समय न तो बनाया जा सकता न ही सीखा जा सकता है। क्योंकि ये सभी वाद्य यंत्र अलग - अलग चीजों से तैयार होते हैं। उनका कहना है कि इन यंत्रों को सीखने में लोगों ने वर्षों लगाया तब जाकर उन्हें ये महारत हासिल हुई। इन्हें वाद्य यंत्रों से युध्द का आग़ाज़ भी होता था। राजा महाराजों के समय इनका उपयोग अधिक होता था।

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