Nagri Madhyamik an Ancient City: इस प्राचीन और समृद्ध नगरी में ब्रज से पहले वासुदेव श्री कृष्ण की पूजा होती थी। जब मथुरा और आसपास के ब्रज के गांव बौद्ध धर्म और व्यापार के लिए प्रसिद्ध हो रहे थे, तब चित्तौड़गढ़ के निकट स्थित "नगरी गांव" वासुदेव श्री कृष्ण और बलदाऊ भैया की पूजा का एक प्रमुख केंद्र था। इस तथ्य के प्राचीन प्रमाण आज भी यहां मौजूद हैं। आइए, हम आपको इस प्राचीन नगरी की ऐतिहासिक और पौराणिक यात्रा पर ले चलते हैं।
साम्राज्य युग:
वर्ष 500 (ई.पू.) से 200 (ई.पू.) के बीच भारत ने एक ऐसा युग देखा, जो राजनीतिक दृष्टि से अखंडता और एकता का प्रतीक था। इस अवधि में राजस्थान की सीमाएँ और अधिकांश क्षेत्र विभिन्न वंशों के सम्राटों के अधीन थे, जो उनके प्रभाव क्षेत्र में शामिल थे। इन सम्राटों की सहिष्णुता के कारण राजस्थान उनकी सांस्कृतिक उपलब्धियों का हिस्सा बना।
प्रमुख वंशों में मौर्य, गुप्त और वर्धन शामिल हैं। मौर्य साम्राज्य के पतन के बाद शुंग साम्राज्य की स्थापना हुई। वर्ष 184-73 (ई.पू.) को ब्राह्मण धर्म के पुनरुत्थान का काल माना जाता है। विदेशी आक्रमणों से रक्षा के लिए पुष्यमित्र शुंग ने एक मजबूत राज्य क्रांति की, जिसके परिणामस्वरूप उन्होंने यवन आक्रांताओं से माध्यमिका की रक्षा करने में सफलता पाई, जिसका उल्लेख पातंजलि के "महाभाष्य" में मिलता है।
नगरी (माध्यमिका):
चित्तौड़ अपनी शानदार ऐतिहासिक विरासत और कला-संस्कृति के लिए विश्व भर में प्रसिद्ध है। यहां के इतिहास में शूरवीरों और वीरांगनाओं की शौर्य गाथाएं, जौहर और साका समाहित हैं। इतिहासकारों के अनुसार, चित्रकूट या चित्तौड़गढ़ का दुर्ग चित्रांगद मौर्य द्वारा स्थापित किया गया था। कर्नल टॉड के अनुसार, सन 728 में बापा रावल ने यहाँ गुहिल वंश का राज्य स्थापित किया।
हालांकि, इस दुर्ग की स्थापना से पहले वर्तमान शहर से लगभग 15 किमी दूर स्थित प्राचीन नगर 'माध्यमिका नगरी' इस क्षेत्र की राजधानी हुआ करती थी। मध्यकाल में, त्रिकूट पर्वत की तलहटी में स्थित इस क्षेत्र को मेदपाट के नाम से भी जाना जाता था। यहां साल भर बहने वाली गंभीरी और बेड़च नदियों के साथ अन्य जलधाराएँ इस उपजाऊ भूमि का आकर्षण बढ़ाती हैं। उत्तम जलवायु के कारण, यहाँ विभिन्न प्रकार की फसलों के साथ-साथ सब्जियां, फल, फूल और औषधीय जड़ी-बूटियां भी बहुतायत में पाई जाती हैं।