Nahargarh Fort: राजधानी जयपुर की शान कहा जाने वाला किला नाहरगढ़ किला अपने इतिहास के लिए दुनियाभर में प्रसिद्ध है। इसका निर्माण सन् 1734 ई. में महाराजा जयसिंह के द्वारा किया गया था। नाहरगढ़ किले को शहर की रक्षा के लिए बनाया गया था इसका पता किले के नाम से ही चलता है क्योंकि नाहर का मतलब है ‘शेर’ यानि शेरों का किला।
किले का इतिहास
अरावली पर्वतमाला के छोर पर स्थित नाहरगढ़ किला जयपुर के संस्थापक सवाई राजा जयसिंह द्वितीय के शासनकाल में बनवाया गया था। पहाड़ के चारो तरफ व इलाके की सुरक्षा के लिये किले के आसपास दीवारे बनी हुई है, माना जाता है कि पहले इस किले को आमेर की राजधानी कहा जाता था।किले के अन्दर भवनों के निर्माण का कार्य 19वीं शताब्दी में सवाई राम सिंह और सवाई माधो सिंह ने पूरा कराया था। विश्वभर से सालाना लाखों सैलानी जयपुर शहर के इस अद्भुत किले को देखने आते हैं।
भूत के खौफ से कई बार रोका गया निर्माण का कार्य
माना जाता है कि इस किले के निर्माण के दौरान कई बार ऐसी गतिविधियां देखने को मिलती थी, जिसके कारण कार्य को रोक दिया जाता है। एक दिन पहले किया गया काम दूसरे दिन बिगड़ा हुआ मिलता था। मजदूरों को यहां काम करने में डर लगता था, क्योंकि उन्होंने कई बार यहां आत्मा का साया देखा था। इस किले का नाम पहले सुदर्शनगढ़ किला था, पंडितों और तांत्रिकों की सलाह से इसका नाम बदल कर नाहरगढ़ किला किया गया।
किले पर कभी नहीं हुआ आक्रमण
नाहरगढ़ किले की अनोखी बात ये है कि इस किले पर कभी कोई आक्रमण नहीं हुआ था, लेकिन फिर भी यह किला कई ऐतिहासिक घटनाओं के लिए मशहूर हैं। सवाई माधो सिंह ने साल 1883 के बाद से नाहरगढ़ में कई महल बनवाए थे। किले के अंदर बनाए गए माधवेन्द्र भवन को महाराजा के निवास के रूप में इस्तेमाल किया जाता था। यहां के कई महल रानियों के लिए बनवाए गए थे। इसके अलावा आरामदेय बैठक, राजा के कक्षों का समूह बनाया गया था। इन सभी कक्षों को आलीशान दरवाजों, खिड़कियों और कई प्रकार की चित्रकारी से सजाया गया था।