Alwar Clay Art: राजस्थान में आपने कई कलाओं का जिक्र सुना होगा, चाहे जयपुर की ब्लु पॉटरी कला हो या उदयपुर की ठीकरी कला, पर आपने अलवर की कागजी कला के बारे में शायद ही सुना होगा, क्योंकि ये कला धीरे-धीरे गायब होते जा रही है। ये कला केवल एक क्षेत्र तक सीमित रह गई है, इसलिए इस कला को बनाए रखने के लिए इसका संरक्षण करना अति आवश्यक है।
कागजी मिट्टी के बर्तनों का इतिहास
अलवर में कागजी कला के नाम से जानी जाने वाली इस कला को क्ले कला भी कहा जाता है। इस कला का भी एक इतिहास रहा है, कागजी मिट्टी के बर्तन राजस्थान की एक पुरानी कलाओं में से एक हैं। ये हजारों सालों से मिट्टी के बर्तनों के एक साधन रहे हैं। कागजी मिट्टी के बर्तन बनाने की एक विशेष कला है। इस मिट्टी के बर्तन की असली शुरुआत सिंधु घाटी सभ्यता से हुई थी, जिसमें इस मिट्टी के बर्तन सिंधु घाटी सभ्यता में होने के प्रमाण मिले हैं।
कागजी मिट्टी कला की तीन शैलियाँ
पहली, सामान्य कागज़ की पतली बिस्किट रंगीन मिट्टी के बर्तन
दूसरी, मिट्टी के बर्तनों को पॉलिश किया जाता है और सफेद और लाल रंग की पट्टियों से रंगा जाता है। योजना की रूपरेखा उकेरी जाती है। इस प्रणाली को स्क्रैफ़िटो नाम दिया गया है और यह नीचे के रंग को प्रकट करता है।
तीसरा, एक बहुत ही अनोखी किस्म; एक बहुत ही बढ़िया और अत्यधिक पॉलिश किया हुआ मिट्टी का बर्तन जो अरबी शैली के मजबूत, गहराई से उकेरे गए, शैलीबद्ध पैटर्न से सजाया गया है। शेष क्षेत्र को पंक्तियों और काले बिंदुओं से रंगा गया है। रंग और पैटर्न में विपरीतता मिट्टी के बर्तनों के आकर्षण को बढ़ाते हुए उकेरे गए क्षेत्र को उजागर करती है।
कागजी मिट्टी के सामान
कागजी मिट्टी से आइटमों को अलग-अलग तरह के मिट्टी के मिश्रण से तैयार किया जाता है, इनके लिए अच्छी गुणवत्ता की मिट्टी का उपयोग किया जाता है, जो खेत, तालाब व पहाड़ों से प्राप्त की जाती है, जिसमें सभी को एक निश्चित मात्रा में लेकर मिश्रण तैयार कर चाक पर रखकर आइटमों को आकृतियां बनाई जाती हैं। चाक पर तैयार करने के बाद इन सामानों को सुखाया व पकाया जाता है, जिससे तैयार किए गए आइटमों मे मजबूती आ सके। इन आइटमों में पॉट्स, खाना बनाने वाले बर्तन, मटकी व छोटे सजावट के लिए सामान भी बनाए जाते हैं।
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