Rajasthan Historical Coin: धनतेरस के अवसर पर भगवान कुबेर की पूजा की जाती है, जिससे आने वाले साल घर में धन दौलत बनी रहती है। साथ ही यह भी मान्यता है कि इस दिन चांदी का सिक्का या फिर कुछ और सामान खरीदना काफी शुभ होता है। धनतेरस पर चांदी का सिक्का खरीदने की परंपरा आज से ही नहीं, बल्कि कई सालों से चलती आ रही है।
लगभग 261 साल पहले भरतपुर रियासत में सिक्के ढाले जाते थे। महाराजा सूरजमल द्वारा साल 1763 में राजस्थान के भरतपुर और डीग की टकसालों में सिक्के ढलवाए थे। महाराजा सूरजमल के ये सिक्के ना केवल भरतपुर इलाके में चलते थे बल्कि यूपी के मेरठ से लेकर हरियाणा तक चलते थे।
साल 1763 में जारी हुआ था पहला सिक्का
इतिहासकारों के मुताबिक भरतपुर में सबसे पहला सिक्का साल 1763 में धनतेरस के मौके पर जारी किया गया था। महाराजा सूरजमल ने इस दिन दो प्रकार के एक चांदी और तांबे के सिक्के ढलवाए थे। बता दें कि चांदी के सिक्के का वजन कुल 171.86 ग्रेन था वहीं तांबे के सिक्के का वजन 280.4 ग्रेन था।
बाद में चांदी के सिक्के को बढाकर 174.70 ग्रेन कर दिया गया था। इसके 100 रूपयों का दाम 99.819 कलदार रुपयों के बराबर हुआ करता था। साथ ही तांबे के सिक्के की तोल 18 माशा की हुआ करती थी, उस समय भरतपुर में 1 माशा का मुल्य 8 रत्ती के बराबर हुआ करता था।
अलग-अलग राज्यों में चलते थे विभिन्न सिक्के
इतिहासकार रामवीर सिंह वर्मा ने जानकारी दी कि आज पूरे देश में एक ही करेंसी चलती है, लेकिन रियासतकाल के समय विभिन्न राज्यों में अलग प्रकार की मुद्राएं और सिक्के चलते थे। आज हमें मार्केट में चांदी के सिक्कों पर भगवान लक्ष्मी और गणेश के नाम खुदे मिल जाते है लेकिन पहले लोग डाई की मदद से खुद ही चांद, सितारे, लाठी आदि चिह्न बनाते थे। साल 1763 से साल 1910 तक भरतपुर में सिक्के प्रचलन में रहे।
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