Rang Teras Festival: राजस्थान की वीरभूमि मेवाड़, जहां की मिट्टी में शौर्य की गाथाएं लिखी गईं, जहां की हवाओं में आन-बान-शान की खुशबू बसी है, और जहां के गांव-गांव में संस्कृति, परंपरा और सामाजिक एकता के अनूठे रंग देखने को मिलते हैं।
इसी मेवाड़ की धरती पर स्थित रुण्डेड़ा गांव अपने गौरवशाली इतिहास और ऐतिहासिक परंपराओं के लिए प्रसिद्ध है। लेकिन इस गांव की सबसे खास पहचान है रंग तेरस पर्व, जिसे बीते 458 वर्षों से मनाया जा रहा है। आइए जानते हैं क्या है ये परंपरा...
26 मार्च को मनाया जाएगा तेरस
इस वर्ष 26 मार्च को यह पर्व मनाया जाएगा। जिसे लेकर वर्तमान में गांव में जोरों से तैयारियां चल रही है। साथ ही सामाजिक एकता का संदेश देते हुए ग्रामीण कीचड़ में लोटपोट होने की परंपरा का भी निर्वहन करते हैं। दिन में आमजन ढोल व मांदल की गूंज के बीच रंगों से होली खेलते हैं तो देर रात विभिन्न करतब, सांस्कृतिक कार्यक्रम के साथ आतिशबाजी व तोप चलाकर पर्व को मनाते हैं।
तड़के 4 बजे शुरू होता है महोत्सव
26 मार्च को रुण्डेड़ा गांव में सुबह चार बजे से ही एड़ा के ढोल की गूंज पूरे गांव के माहौल को उत्साह और ऊर्जा से भर देगी। यह वही ढोल है, जिसकी आवाज सुनकर पिछली साढ़े चार सदियों से यह परंपरा जीवंत होती आ रही है। यह ढोल केवल एक वाद्य यंत्र नहीं, बल्कि यह ऐतिहासिक परंपरा का उद्घोष है। जब यह बजता है, तो पूरा गांव जाग जाता है और हर व्यक्ति जान जाता है कि आज रंग तेरस का पर्व है।
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विदेशों से तेरस देखनेे आते हैं लोग
हर साल बड़ी संख्या में देसी और विदेशी पर्यटक इस पर्व का अनुभव लेने रुण्डेड़ा पहुंचते है। जो प्रवासी इस दिन गांव नहीं पहुंच पाते, उनके लिए सोशल मीडिया पर लाइव प्रसारण किया जाता है। साथ ही गांव में प्रमुख मार्गों पर बड़ी एलइडी स्क्रीन भी लगाई जाती है। आयोजन को लेकर दो दिन पूर्व ही गांव के प्रवासी विदेश से गांव पहुंचना शुरू हो जाते हैं।