Vibrant Culture of Rajasthan- राजस्थान की रंग-बिरंगी संस्कृति की चर्चा पूरी दुनिया में होती है और हो भी क्यों न? यहां के अलग-अलग समुदाय और जनजातियों के रहन-सहन, खान-पान, इतिहास और वर्तमान इतने रंग-बिरंगे और अलहदा होते हैं कि लोगों का ध्यान उनकी ओर आकर्षित हो ही जाता है। कई अलग-अलग रियासतों से मिलकर बने हुए होने के कारण राजस्थान में बहुत अधिक क्षेत्रीय विविधता देखने को मिलती है। इन क्षेत्रीय विविधताओं का संवर्धन यहां की प्रमुख जनजातियां करती हैं, जो यहां की संस्कृति को अलग-अलग रंग प्रदान करती हैं।
भील जनजाति
भील राजस्थान के सबसे प्राचीन जनजातियों में से एक है। यह जनजाति मुख्यतः उदयपुर में रहती है, किंतु यह जनजाति आपको चित्तौड़गढ़, डूंगरपुर और बांसवाड़ा जिले में भी देखने को मिलेगी। भील शब्द जिसकी उत्पत्ति द्रविड़ शब्द "बिलु" से हुई है, द्रविड़ भाषा में इसका अर्थ "कमान" होता है। चूंकि यह जनजाति तीर-कमान चलाने में अत्यधिक निपुण है, इसलिए इन्हें यह नाम मिला।
मीणा जनजाति
मीणा समुदाय प्राचीन समय में राजस्थान के शासक समुदाय की गिनती में आता था। कई किताबों में मीणा को राजपूतों के समान क्षत्रिय माना गया है। मीणा एक खानाबदोश जनजाति है, जिन्हें भीलों के भांति ही पहाड़ी जनजाति और "अर्ध-जंगली" माना गया है। ब्रिटिश काल में इन्हें आपराधिक जनजाति घोषित कर दिया गया था, किंतु आज के समय में मीनाओं को अनुसूचित जनजाति श्रेणी में वर्गीकृत किया गया है। मीणा जनजाति अपने आपको भगवान विष्णु के मत्स्य अवतार का वंशज मानती है।
कालबेलिया जनजाति
कालबेलिया जनजाति राजस्थान में सर्वाधिक पाली जिले में पाई जाती है। इसके अतिरिक्त यह आपको अजमेर, चित्तौड़गढ़ और उदयपुर में भी देखने को मिलेगी। इस जनजाति को सपेरा, सपेला, जोगी और जागी भी कहा जाता है। कालबेलिया मुख्यतः दो समुदायों में विभाजित है- मेवाड़ा और दलीवाल। प्राचीन समय में कालबेलिया मुख्यतः एक स्थान से दूसरे स्थान विचरण करते रहते थे। उनका मुख्य व्यवसाय सांप पकड़ना और उसके ज़हर का व्यवसाय करना था। यह जनजाति सांप, कुत्ते, बिल्ली, घोड़े आदि जानवर पालती भी थी। कालबेलिया राजस्थान के प्रमुख लोक नृत्यों में से एक है। यह नृत्य इसी समुदाय द्वारा किया जाने वाला लोक नृत्य है, जो कालबेलिया जनजाति की पारंपरिक जीवन शैली को अभिव्यक्त करता है।
गरासिया जनजाति
गरासिया जनजाति मीणा और भील जनजाति के पश्चात राजस्थान की तीसरी सबसे प्रमुख जनजाति है। अपने आपको चौहान वंश का वंशज मानने वाली यह जनजाति आबू रोड तहसील, सिरोही की कोटरा, देसूरी तहसील, उदयपुर की गोगुंडा, पाली जिले की बाली और खेरवाड़ा तहसीलों में रहती है। गरासियों का प्रमुख मेला 'गौर का मेला' है, जो सिरोही जिले में वैशाख पूर्णिमा को लगता है। यह जनजाति मुख्य रूप से दुर्गा, शिव और भैरव की आराधना करती है। गरासिया समुदाय में गांव के मुखिया को पटेल, सहलोत और पालवी जैसे उपनामों से भी जाना जाता है। गरासिया जनजाति से संबंधित नृत्य को "लूर" कहा जाता है।