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Rajasthan art: राजस्थान के उदयपुर की जलसांझी कला एक अनोखी पेंटिंग है जिसे लगभग 8 घंटे बैठकर तैयार किया जाता है। खास बात यह है कि यह केवल श्राद्ध पक्ष के समय बनाई जाती है।

Rajasthan art: राजस्थान की सांझी कला के प्रकार की अनोखी पेंटिंग है जिसे केवल उदयपुर में ही श्राद्ध यानी पितृ पक्ष के दौरान बनाया जाता है। उदयपुर के चुनिंदा कृष्ण मंदिरों में श्राद्ध पक्ष के समय यह अनोखी पेंटिंग देखने को मिलती है। इस प्रकार की जलसांझी बनाने की कला केवल राजस्थान के उदयपुर का एक ही परिवार के पास है, जो लगभग पिछले पांच दशक से इस कला को बनाते आ रहे है। बता दें कि आज के समय में राजेश वैष्णव और उनके दो बेटे इस कला से जुड़े हुए है। 

500 साल से पीढ़ी दर पीढ़ी बनाते आ रहे है सांझी
जलसांझी कलाकार राजेश वैष्णव ने बताया कि लगभग 500 साल पहले से पीढ़ी दर पीढ़ी यह कला बनाती आ रही है। उनके पिता जलसांझी कला के पुरोधा के साथ पखावज वादक हुआ करते थे। उनके बाद से अब वे इसी परंपरा को निभाते आ रहे हैं। बतौर साक्ष्य उनके पास करीब 400 प्राचीन पत्रक मौजूद है, जो यह साबित करते हैं कि उनके पुरखे इस कला से जुड़े हुए थे। साथ ही उन्होंने आगे बताया कि इस कला को तैयार करने के लिए एक बार में 8 घंटे बैठना पड़ता है। 

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श्राद्ध पक्ष पर बनाई जाती है सांझी 
संध्या देवी को रिझाने के लिए सांझी बनाने का महत्व होता है। श्राद्ध यानी पितृ पक्ष में जहां एक तरफ कुंवारी लड़कियां सांध्य देवी की पूजा कर घरों के दरवाजे पर सांझी बनाती है, वहीं दूसरी ओर पितरों के प्रति श्रद्धा, आदर भाव प्रकृट करने के लिए पितृ पक्ष के समय गोबर की सांझी बनाने की परंपरा रही है। इसके अलावा पुष्टीमार्गीय संप्रदाय में भगवान श्री कृष्ण को प्रसन्न करने के लिए पितृ पक्ष में विभिन्न प्रकार की सांझी तैयार की जाती है। इन्हें गोबर, सूखे मेवों, फूल, दाल पत्तों और रंगों से बनाया जाता है। 

राधा रानी ने पहली बार बनाई थी यह कला 
माना जाता है कि एक भगवान श्रीकृष्ण गुस्सा हो गए थे, जिन्हें मनाने के लिए राधा रानी ने पहली बार यमुना किनारे के पास फूलों की सांझी बनाई थी, जिसे देखकर भगवान श्रीकृष्ण प्रसन्न हो गए थे।

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