Rajasthan Culture: राजस्थान के उदयपुर में एक ऐसी परंपरा निभाया जाता है, जिसे लोगों द्वारा जान लगाकर पूरे बल के साथ किया जाता है। इस परंपरा को एक मेले के दौरान खेला जाता है। जावर माता मंदिर ने बताया कि यह परंपरा कई साल से इस आदिवासी क्षेत्र में निभाई जाती आ रही हैं ।
कैसे होती है नेजा परंपरा
इस परंपरा को माता के मंदिर के सामने सेमल के पेड़ पर पोटलियों को बांधा जाता है। उन पोटलियो को लेने के लिए आस-पास के सभी लोग इस परंपरा में हिस्सा लेते हैं, इस जगह नेजा लूटकर जीतना यहां की एक अनोखी परंपरा है, जो कई वर्षों से चली आ रही है। जिसमें लाल कपड़े में चावल, गेंहू के साथ ओर सामग्री के साथ 30 फीट ऊपर सेमल के पेड़ बांधकर जबरी गैर खेली जाती है
नेजा प्रथा में बांस के डंडों से खेलती है महिलाएं
नेजा प्रथा में लट्ठ, तलवार को लेकर आदिवासी ढोल और कुंडी की थाप पर गैर नृत्य करते हैं और महिलाएं बड़े बांस के डंडों से गैर खेलती है। ये एक प्रकार का नृत्य भी है, जो नेजा लूटने से पहले किया जाता है, जिसमें महिलाएं लूटने वालों को बांस के डंडे से मारती है। इसको 5 बार दोहराया जाता है। उसके बाद ही कहीं जाकर नेजा लूटा जाता है।
कहां, कब करते हैं नेजा परंपरा
यह परंपरा मेवाड़ के उदयपुर सम्भाग में होली के बाद नवमी को उदयपुर से करीब 40 किलोमीटर दूर जावर माता के प्रांगण में नेजा लूटने की परंपरा देखने को मिलती हैं। जब दो दिन के लिए मेला लगता है, तब इस प्रथा को निभाया जाता हैं। इस जनजाति समुदाय के मेले को हजारों की संख्या में देखने को आते हैं।
नेजा में होते हैं खून में लथपथ
सेमल के पेड़ पर बंधी पोटलियों को लूटने का क्रम शुरू होता है, तो हजारों लोग लूटने पेड़ पर चढ़ते है. लेकिन जो चढ़ता उसे नीचे गिराने के लिए उनकी टांग को पकड़ कर नीचे खींचा जाता है, जो आखिर तक बना रहता है, वो ही विजेता बनता हैं। लेकिन नेजा को खेलते समय लड़ाई में सेमल के कांटो से लोग खून से लथपथ हो जाते हैं और कपड़े भी फट जाते हैं।
समानता से खेला जाता है नेजा खेल
इस जनजाति के लोगों का कहना है कि आदिवासी सेमल के पेड़ों को नहीं काटते हैं और जल जंगल और जमीन पर उनका अधिकार हैं। नेजा लूटने में भले ही लड़ाई कड़े संघर्ष में हो, लेकिन इस दौरान कोई मारपीट व हाथापाई नहीं की जाती और न ही कोई बैर का भाव होता है। इसे एक खेल की तरह खेला जाता हैं। इसमें जो भी विजेता बनता है, चाहे वो किसी भी गांव का हो, उसे कंधे पर बैठकर उसकी जीत का जश्न मनाया जाता हैं।
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