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Battle of Gagron: गागरोन का युद्ध 1519 ई. में मालवा के सुल्तान महमूद खिलजी द्वितीय और मेवाड़ नरेश महाराणा सांगा के बीच लड़ा गया था। युद्ध में मेवाड़ के राजा महाराणा सांगा ने अपनी वीरता से युद्ध जीत लिया था।

Battle of Gagron: भारत को वीरों की जननी माना जाता है, क्योंकि देश पर हजारों क्रुरता से भरे आक्रमण हुए, जिन्होंने हमारे देश को कई शूरवीर दिए है। इन्हीं वीरों में से एक माने जाते हैं राजस्थान के राणा सांगा, जिन्होंने अपनी वीरता और शौर्य से न केवल देश के यश का विस्तार किया, बल्कि आक्रमणकारियों से देश और मानवता का संरक्षण भी किया। उन्होनें अपनी वीरता से लोगों के मन में देश के प्रति मर मीटने का उदाहरण भी दिया। आज इस लेख में हम बात करेंगे राणा सांगा के उस युद्ध के बारें में जिनकी वीरता की गाथाएं आज भी लोगों में देश के प्रति जोश भरने के लिए काफी है। 

गागरोन का युद्ध

इतिहास के पन्नों को पलटकर देखा जाए तो भारत पर कई नरसंहार और ऐसे युद्ध हुए, जिन्होंने मानवता का समूल नाश किया। क्रूरता और अत्याचारों के अंत के लिए कई शूरवीरों ने अपने प्राणों की बलि चढ़ाई है। ऐसा ही एक युद्ध राजस्थान के गागरोन में 1519 ई. हुआ था।  

किसके बीच हुआ था गागरोन का युद्ध

बता दें कि गागरोन का युद्ध मालवा के सुल्तान महमूद खिलजी द्वितीय और मेवाड़ नरेश महाराणा सांगा के बीच लड़ा गया था। यह इतिहास का ऐसा युद्ध था, जिसमें देश मे मेवाड़ में जन्में शूरवीरों का कौशल देखा था। मालवा के मुस्लिम बलों ने राजपूती तलवारों का लोहा माना था और देश के लिए जान देने वाले शूरवीरों का बलिदान भी देखा था। 

गागरोन युद्ध का कारण?

महाराणा सांगा उन योद्धाओं में से थे जो अपनी दूरगामी सोच के कारण देश की रक्षा हेतु हर दुश्मन से लड़े। उन्होंने अपने जीवन काल में कई युद्ध जीते, जिनमें से एक है गागरोन का युद्ध। युद्ध के पीछे का कारण था कि महाराणा सांगा ने मालवा राज्य से निष्कासित सरदार मेदिनीराय की मदद कर उसे चंदेरी और गागरोण का राज्य दिलाया था। जिससे गुस्सा होकर महमूद खिलजी द्वितीय ने मेवाड़ पर आक्रमण करना चाहा और मेवाड़ तक अपना राज फैलाने का अवसर समक्षा। 

गागरोन युद्ध में किसकी हुई थी जीत?

गागरोन के युद्ध में मेवाड़ के राजा महाराणा सांगा ने अपनी वीरता से युद्ध जीत लिया था। कहा जाता है कि जीत के बाद महाराणा सांगा ने मालवा के सुलतान महमूद खिलजी द्वितीय को बंदी बनाकर तीन महीने तक चित्तौड़ में रखा था।

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