Chawand Udaipur: राजस्थान की जमीन को वीरता की भूमि भी कहा जाता है, क्योंकि यहां कई प्रमुख युद्ध लड़े गए और यहीं से देश को महान योद्धा मिले हैं। यह धरती महाराणा प्रताप की राजधानी भी रही है। माना जाता है कि महाराणा प्रताप ने अपने जीवन के आखिरी पल चावंड के प्रतापी किले में गुजारे थे। आज भी यह प्रतापी किला महाराणा प्रताप के गौरव और वीरता की गाथा सुनाता है। लेकिन दुर्भाग्य की बात यह है कि भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग के अधिन होते हुए भी आज यह किला अपनी पहचान की मोहताज है।
महाराणा प्रताप की अंतिम राजधानी
उदयपुर जिले से करीब 60 किमी दूर सराड़ा तहसील का चावंड कस्बा महाराणा प्रताप की आखिरी राजधानी रहा है। राजस्थान के इतिहास में इसकी खास पहचान है, लेकिन इसके बाद भी काफी कम लोग यहां पहुंच पाते हैं। किले के नाम पर आज यहां केवल ईंट और पत्थर ही दिखाई पड़ते हैं। इस स्थान को बढ़ाने के लिए कई कदम भी उठाए गए, जिसके लिए मेवाड़ कॉम्पलेक्स योजना बनाई गई थी, जिसके दूसरे चरण में हल्दीघाटी और चावंड को बढ़ाने का काम हाथ में लिया गया था। लेकिन यह योजना भी विफल रही।
किले का इतिहास
यहां आए पर्यटकों के लिए हल्दीघाटी तक आना आसान है, लेकिन चावंड के इस किले का विकास नहीं हो पाया। असफल योजना की भेंट चढ़े इस किले की हालात तहस-नहस हो गई है। किले के नाम पर सिर्फ नींव सुरक्षित रखी गई है। इतिहासकारों के अनुसार महाराणा प्रताम ने सरदान लूना चावण्डिया को युद्ध में हराकर करके इस किले पर कब्जा किया था।
इस किले को जीतने की खुशी में माताजी का एक मंदिर बनवाया गया था, जो आज भी चावंड में बना हुआ है। महाराणा प्रताप के नाम पर इस किले को प्रतापी किला कहा जाने लगा, लेकिन ना तो यह किला भव्य था और ना ही बाकी किलों के जैसा विशाल और सुरक्षित। इसे केवल एक छोटी पहाड़ी पर पत्थरों, ईंटों और चूने से बनाया गया था।