Chittorgarh Fort: राजस्थान राजपूत राजाओं से रक्षित भूमि वाला स्थान है। यह रेत के टीलों और रेगिस्तान से बना प्रदेश है। राजस्थान अर्थात राजाओं का स्थान वाला प्रांत। राजस्थान को इसके शाही अंदाज और ऐतिहासिक धरोहर के लिए जाना जाता है। यह राज्य अद्भुत महलों, किलो, मंदिरों, हवेलियां, रंग और त्योहारों से पूरी दुनिया में प्रसिद्ध है। राजस्थान संपूर्ण देश के लिए कला एवं संस्कृति का अनुपम उदाहरण है। वीर भूमि राजस्थान विविध कलाओं के साथ-साथ विभिन्न नृत्यकों की रंग स्थली रहा है। राजस्थान की मिश्रित परंपराओं को देखते हुए इसे इस सुरंग राजस्थान, रंगीला राजस्थान, रंग-बिरंगा राजस्थान, आदि नाम से जाना जाता है।
1949 में बना भारत का प्रांत
रेगिस्तानी भूमि होने के बावजूद राजस्थान में केवल रेत ही नहीं, बल्कि हरे-भरे खेत-खलियान है। यह 30 मार्च 1949 को भारत का एक ऐसा प्रांत बना जिसमें तत्कालीन राजपूताना की शक्तिशाली विरासतें विलीन हुई। राजस्थान भारत देश का क्षेत्रफल के आधार पर सबसे बड़ा राज्य होने के साथ-साथ यह विदेशी पर्यटकों का सबसे पसंदीदा स्थान भी है। वैसे तो राजस्थान के कण-कण में इसकी खूबसूरती समाई हुई है। यहां के राजाओं को उनकी साधारण राज्य भक्ति और शौर्य के लिए जाना जाता है। लेकिन आज हम आपको राजस्थान की कुछ खास दुर्ग के इतिहास को बताएंगे। इस किले को खूनी लड़ाइयां लड़ने वाला ऐतिहासिक किला भी कहते हैं।
राजस्थान का चित्तौड़गढ़ किला
इसके किले की वजह से की वजह से राजस्थान की पहचान दुनिया भर में है। इसके किले को देखने पर्यटक दूर-दूर से आते हैं। यह किला राजस्थान के सात अजूबों में भी शुमार है। चित्तौड़गढ़ किले के बारे में कहां भी जाता है की गढ़ तो चित्तौड़गढ़ बाकी तो सब गढियां हैं। यह दुर्ग भारत का सबसे बड़ा और प्राचीन दुर्ग है। इस दुर्ग को 21 जून 2013 में यूनेस्को विश्व विरासत स्थल में शामिल किया गया था।
इतिहासकारों का मानना है कि इस दुर्ग का निर्माण 7वीं शताब्दी में मौर्य शासक चित्रांगद मौर्य ने करवाया था। जब आप इस दुर्ग को देखते हैं तो आपको यह रोमांस से भर देता है इस दुर्ग में प्रवेश करने के लिए सात दरवाजे लगे हुए हैं जिन्हें पार करना शत्रुओं के लिए हमेशा से ही बहुत मुश्किल रहा था। यह दुर्ग पहाड़ी के किनारे चट्टान के ऊपर ऊंचा और मजबूत बना हुआ है। जब कोई शत्रु चित्तौड़गढ़ किले पर आक्रमण करता था तो वह कभी भी सामने से वार नहीं करता था। क्योंकि, सामने से वार करने पर किसी भी स्थिति में विजय नहीं मिल सकती थी।
इस कारण शत्रु इस किले पर पर सामने से वार करने की बजाय किले को चारों ओर से घेर लेता था। ताकी, किले को बाहर से आने वाली भोजन सामग्री पर रोक लगाई जा सके। जैसे-जैसे किले की भोजन सामग्री खत्म होती तो राजपूतों को विवश होकर किले के द्वार खोलने ही पड़ते थे। शत्रुओं की ज्यादा संख्या होने के कारण हमेशा राजपूतों को हार का सामना करना पड़ता था।
रानी पद्मावती को क्यों करना पड़ा जौहर
इस किले का इतिहास काफी उतार-चढ़ाव वाला रहा है। इस दुर्ग के परिसर में 65 ऐतिहासिक संरचना है। जिसमें 19 मुख्य मंदिर, चार महल परिसर, चार ऐतिहासिक स्मारक और करीब 20 जल निकाय हैं। रानी पद्मावती के पति का नाम रत्न सिंह था। रानी इतनी खूबसूरत थी कि उसकी खूबसूरती की चर्चा दूर-दूर तक फैले हुए थे। बात उस समय की है जब अलाउद्दीन खिलजी ने हिंदुस्तान में आतंक मचा रखा था।
उसने कई बड़ी-बड़ी रियासतों को अपने कब्जे में ले लिया था। अलाउद्दीन खिलजी ने भी रानी पद्मावती की खूबसूरती के चर्चे सुने थे। वह हर हाल में रानी को पाना चाहता था। रानी को पाने के लिए अलाउद्दीन ने कई कोशिश की। किंतु, वह नाकाम रहा। आखिर में उसने रानी को पाने के लिए चित्तौड़गढ़ पर हमला बोल दिया था। अलाउद्दीन की सेना बहुत ज्यादा थी। राजा रत्न सिंह को अलाउद्दीन खिलजी के छल के कारण अपनी जान गंवानी पड़ी।
इसी वजह से रानी पद्मावती ने जौहर किया। यह इतिहास का पहला जौहर था। यह जौहर इसी किले में रानी पद्मावती ने 16 हजार दासियों साथ जीवित अग्नि में समाधि लेकर किया था। अलाउद्दीन की सेना ने यहां चारों तरफ रक्तपात बिछा दिया। इसलिए युद्ध में लाखों लोग मारे गए। राजपूतानिया विधवा हो गई। ऐसी ही दुर्ग पर इतिहास की अनेक खूनी लड़ाइयां लड़ी गई है।
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