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राजस्थान के चित्तौड़गढ़ जिले में स्थित प्रसिद्ध बानोडा बालाजी मंदिर में भक्तों को प्रसाद के रूप में नोट और सिक्के दिए जाते हैं। यहां लक्ष्मी जी का मंदिर है जिसके कपाट साल में 2 बार खोले जाते हैं।

देश के विभिन्न क्षेत्रों में ऐसी कई मंदिरें हैं जिसकी मान्यता काफी ज्यादा है। जब भी मंदिर जाता है तब वो भगवान को बिना कोई भोग लगाए वापस नहीं लौटता। उसी भोग को वापस प्रसाद के रूप में दे दिया जाता है। लेकिन आज हम आपको राजस्थान में स्थित एक ऐसे मंदिर के बारे में बताएंगे, जहां भक्तों को प्रसाद के रूप में नोट और सिक्के दिए जाते हैं। यह परंपरा कई सालों से चली आ रही है। इसके बारे में आइए हम आपको विस्तार से बताते हैं।

भक्तों की लगती हैं लंबी कतारें 

राजस्थान के चित्तौड़गढ़ जिले में फेमस धार्मिक स्थल बानोडा बालाजी मंदिर परिसर में श्री लक्ष्मी रानी मंदिर के शरद पूर्णिमा पर खोले गए थे, यहां हजारों के संख्या में भक्त पहुंचे थे। माता के दर्शन और प्रसाद को लेने के लिए लंबी कतारें लगी हुई थीं। श्री बनोडा बालाजी मंदिर में कई सारे मंदिर बने हुए हैं, जिसमें एक लक्ष्मी माता के मंदिर भी है।

साल में केवल 2 दिन खुलते हैं मंदिर के कपाट 

इस मंदिर के कपाट साल में केवल दो बार ही श्रद्धालुओं के लिए खोले जाते हैं। शरद पूर्णिमा के दिन भी इस मंदिर के पट को खोल दिया गया है और पूजा आरती की गई। उसके बाद भक्तों को प्रसाद के रूप में एक पैकेट दिया जाता है जिसमें पंच मेवा, हवन कुंड का भस्म, पुष्प, नोट और सिक्के रहते हैं। किसी भक्त की पोटली यानि पैकेट में 1,2,5,10,20 का सिक्का तो वहीं, किसी के पैकेट में 10, 100, 500 का नोट रहता है।

दूर दराज से आते हैं भक्त 

ऐसी धार्मिक मान्यता है कि प्रसाद के रूप में मिले इस नोट या सिक्के को घर की तिजोरी में संभाल कर रखा जाता है। ऐसा करने से सुख, शांति और समृद्धि की प्राप्ति होती है। इस पूजा के दौरान यहां के आसपास के गांवों के लोग और चित्तौड़गढ़, कोटा, उदयपुर, भीलवाड़ा, सिंगोली आदि जगहों से लोग इकठ्ठा होते हैं। यहां का प्रसाद लेने के लिए श्रद्धालुओं की लंबी लाइनें लगी हुई रहती हैं। 

जब मां लक्ष्मी के इस मंदिर का कपाट खोला जाता है, तब छप्पन भोग लगाया जाता है। झांकी भी सजाई जाती है और अलग अलग तरह की चीजें भी होती हैं। इस स्थिति में भारी संख्या में भक्त इसका आनंद लेते हैं।

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