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Rajasthan Chipko Movement: राजस्थान का 16वीं शताब्दी का चिपको आंदोलन, जहां पेड़ों की कटाई को रोकने के लिए बिश्नोई समुदाय के लोगों ने अपने प्राणों की बलि दे दी थी। आईए विस्तार से जानते हैं पूरी कहानी।

Rajasthan Chipko Movement: राजस्थान के लोग अपनी संस्कृति के साथ-साथ पर्यावरण के प्रति भी अत्यधिक जागरूक माने जाते हैं। समय-समय पर राजस्थान के लोग पर्यावरण के प्रति अपनी जागरूकता को प्रमाणित करते रहे हैं। इसी का एक प्रमुख उदाहरण है 16वीं शताब्दी का चिपको आंदोलन।

चिपको आंदोलन का परिचय

चिपको आंदोलन का नाम सुनते ही आमतौर पर उत्तराखंड के टिहरी गढ़वाल जिले का नाम सामने आता है। लेकिन बहुत कम लोग यह जानते हैं कि उत्तराखंड में हुए चिपको आंदोलन से पहले भी भारत में एक चिपको आंदोलन हुआ था। यह आंदोलन 16वीं शताब्दी में हुआ था, जिसने उस समय के जोधपुर के महाराजा अभय सिंह को अपने निर्णय पर पुनर्विचार करने के लिए मजबूर कर दिया था। 

राजस्थान चिपको आंदोलन का घटनाक्रम

1730 के दशक के आसपास जोधपुर के महाराजा अभय सिंह अपने महल का निर्माण करवा रहे थे। इसके लिए उन्हें लकड़ी की आवश्यकता पड़ी, जिसके लिए उन्होंने अपनी रियासत के खेजड़ी के वृक्षों को काटने का आदेश दे दिया। उनके सैनिकों ने इस आदेश का पालन करते हुए जोधपुर में खेजड़ी के वृक्षों को काटना शुरू कर दिया। इसी दौरान वे खेजड़ली गांव पहुंचे, जहां बिश्नोई समुदाय के लोग निवास करते थे। 

खेजड़ली गांव में जब पेड़ों की कटाई शुरू हुई, तो अमृता देवी नामक एक महिला ने पेड़ से चिपककर पेड़ों की रक्षा करने की कोशिश की। उनके इस साहसिक कदम का अनुसरण करते हुए उनकी तीन बेटियां भी पेड़ से चिपक गईं। लेकिन महाराज के सैनिकों ने उनकी कोई बात नहीं मानी और पेड़ों के साथ-साथ उन्हें भी काट दिया। इस खबर ने पूरे गांव में हलचल मचा दी और 363 लोगों ने अमृता देवी का अनुसरण करते हुए अपने प्राणों की आहुति दे दी। जब महाराजा अभय सिंह को इस घटना का पता चला, तो वह बहुत दुखी हुए और उन्होंने अपने सैनिकों को आदेश दिया कि वे वापस लौट आएं और पेड़ों की कटाई बंद कर दें। 

बिश्नोई समुदाय और उनके संरक्षण के सिद्धांत

बिश्नोई समुदाय के आध्यात्मिक गुरु जंबेश्वर ने समुदाय के लिए 29 नियम स्थापित किए थे, जिनमें से कई नियम पेड़-पौधों और अन्य जीवों के संरक्षण से जुड़े थे। यही कारण है कि बिश्नोई समुदाय के लोग आज भी प्रकृति की पूजा करते हैं और उसके संरक्षण के लिए हमेशा तत्पर रहते हैं। इसी समुदाय के लोगों ने सलमान खान द्वारा काले हिरण के शिकार का मामला भी पुलिस स्टेशन में दर्ज करवाया था। 

अमृता देवी का बलिदान

अमृता देवी का साहसिक बलिदान व्यर्थ नहीं गया। आज भी बिश्नोई समुदाय के लोग उन्हें और उन सभी 363 शहीदों को हर साल याद करते हैं। अमृता देवी के नाम से वन्यजीवों के संरक्षण के क्षेत्र में उत्कृष्ट कार्य करने वालों को 'अमृता देवी वन्यजीव संरक्षण पुरस्कार' दिया जाता है।

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