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Rajasthan History: सरदार वल्लभ भाई पटेल, जो उस समय भारत के गृह मंत्री थे, ने राजस्थान को एक राज्य बनाने में अहम भूमिका निभाई। यह प्रक्रिया आसान नहीं थी और इसे पूरा करने में 8 साल, 7 महीने, और 14 दिन का लंबा समय लगा।

Rajasthan History: भारत की आजादी के बाद देश के समक्ष कई चुनौतियां खड़ी थीं और उनमें से एक महत्वपूर्ण चुनौती थी देश की अलग-अलग रियासतों को एकीकृत करना। राजस्थान भी इन्हीं चुनौतियों से जूझ रहा था, क्योंकि यहां कई रियासतें थी, जो स्वतंत्र रहने या पाकिस्तान के साथ जाने की इच्छा रखती थी। सरदार वल्लभ भाई पटेल, जो उस समय भारत के गृह मंत्री थे। उन्होंने राजस्थान को एक राज्य बनाने में अहम भूमिका निभाई। यह प्रक्रिया आसान नहीं थी और इसे पूरा करने में 8 साल, 7 महीने और 14 दिन का लंबा समय लगा।

जब 15 अगस्त 1947 को भारत आजाद हुआ, तब राजस्थान की अधिकांश रियासतें स्वतंत्र रूप से चल रही थीं। अजमेर-मेरवाड़ा पहले से ही अंग्रेजों के अधीन था, इसलिए उसका भारत में विलय आसानी से हो गया, लेकिन बाकी रियासतों का विलय एक बड़ी चुनौती था। कुछ रियासतें पाकिस्तान के साथ जाने की इच्छा जता रही थी, जबकि कुछ स्वतंत्र राज्य बने रहना चाहती थी। सरदार पटेल के लिए सबसे बड़ा लक्ष्य था सभी रियासतों को भारत के साथ एकीकृत करना।

विलय की शुरुआत: मत्स्य संघ का निर्माण

18 मार्च 1948 को राजस्थान के विलय की प्रक्रिया शुरू हुई, जब अलवर, भरतपुर, धौलपुर, और करौली की रियासतों का आपस में विलय कर 'मत्स्य संघ' का निर्माण किया गया। यह पहला चरण था जिसमें इन रियासतों को एक साथ लाया गया। इसके बाद, कई अन्य रियासतें भी शामिल हुईं। दूसरे चरण में कोटा, बूंदी, झालावाड़, बांसवाड़ा, डूंगरपुर, प्रतापगढ़, किशनगढ़, टोंक, कुशलगढ़, और शाहपुरा की रियासतों को मिलाकर 'राजस्थान संघ' का निर्माण किया गया।

इतिहास की किताबों में उल्लेख मिलता है कि जोधपुर और जैसलमेर के राजा पाकिस्तान के साथ जुड़ने की योजना बना रहे थे। पाकिस्तान के संस्थापक मोहम्मद अली जिन्ना ने इन्हें कागज पर हस्ताक्षर करने की खुली छूट दी थी, जिसमें वे अपनी शर्तें लिख सकते थे। हालांकि, सरदार पटेल इस कदम के सख्त खिलाफ थे। उन्होंने जोधपुर और जैसलमेर के राजाओं को मनाने में बड़ी मेहनत की और अंततः उन्हें भारत के साथ रहने के लिए राजी कर लिया।

राजस्थान संघ का विस्तार

14 जनवरी 1949 को उदयपुर में एक सार्वजनिक बैठक में सरदार पटेल ने जैसलमेर और  बीकानेर, जोधपुर, जयपुर रियासतों के राजस्थान संघ में विलय की घोषणा की। इसके बाद, 30 मार्च 1949 को जयपुर को राजस्थान की राजधानी घोषित किया गया और इसी दिन राजस्थान का आधिकारिक रूप से गठन किया गया। यह दिन राजस्थान के इतिहास में बेहद महत्वपूर्ण है और इसे राज्य स्थापना दिवस के रूप में मनाया जाता है।

सिरोही और अजमेर-मेरवाड़ा का विलय

राजस्थान का गठन कई चरणों में हुआ। छठे चरण में 26 जनवरी 1950 को सिरोही रियासत का विभाजन हुआ। आबू और देलवाड़ा तहसीलों को बंबई प्रांत में शामिल किया गया, जबकि सिरोही का बाकी हिस्सा राजस्थान में मिला दिया गया। हालांकि, बाद में 1956 में राज्यों के पुनर्गठन के बाद आबू और देलवाड़ा को फिर से राजस्थान का हिस्सा बना दिया गया।

राजस्थान का अंतिम स्वरूप: 1956 में राज्य का पुनर्गठन

1 नवंबर 1956 को राज्यों के पुनर्गठन के साथ अजमेर-मेरवाड़ा को राजस्थान में मिला दिया गया, और इसी के साथ राजस्थान का वर्तमान स्वरूप तैयार हो गया। इस प्रक्रिया में कुल 8 साल, 7 महीने, और 14 दिन का समय लगा, लेकिन अंततः राजस्थान एक एकीकृत राज्य के रूप में उभर कर सामने आया।

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