Jaipuri Lehariya Saree: राजस्थान की संस्कृति और परंपरा में बांधनी और लहरिया कपड़ों का विशेष स्थान है। लहरिया प्रिंट, जो 18वीं सदी से राजस्थानी फैशन का हिस्सा है, आज पूरे देश में पसंद किया जाता है। लहरिया प्रिंट का इतिहास और विकास बेहद रोचक है। तो आइए इस खबर में जानते हैं....
लहरिया प्रिंट की उत्पत्ति
राजस्थान में पगड़ी पहनना रिवाज है, जो सदियों से देखा जा रहा है। पहले के समय में केवल राजपूत लोगों को सिर पगड़ी बांधने का अधिकार था। पगड़ी को अच्छी मरोड़ देने के लिए कपड़े को बांध कर रखा जाता था, इसलिए इसका नाम बंधेज पड़ गया।
लहरिया प्रिंट की विशेषता
इसके बाद पगड़ी में अच्छी और खूबसूरत लगे, इसलिए उसमें टाई एंड डाई के जरिए तिरछी रेखाएं बनाई जाने लगीं। जहां पहले ये रेखाएं सफेद रंग की होती थीं, और अब यह रेखाएं अलग-अलग रंग भी होने लगी हैं। लहरिया प्रिंट राजस्थान के थार रेगिस्तान से प्रेरित है, जहां रेत में लहरें बनती हैं।
वर्तमान में लहरिया फैशन
लहरिया एक ट्रेडिशनल प्रिंट है, मगर अब यह फैशन का हिस्सा बन चुका है। लहरिया प्रिंट आपको सिल्क, शिफॉन, और जॉर्जेट में भी दिख जाएगा। साथ ही आपको इसमें एंब्रॉयडरी, गोटा पट्टी, और डिजाइनर गोटा वर्क मिल जाएगा। लहरिया में अन्य प्रिंट भी देखे जा रहे हैं, और चिकनकारी एंब्रॉयडरी भी लहरिया प्रिंट वाले फैब्रिक पर की जा रही है।
लहरिया प्रिंटिंग की तकनीक
पहले टाई एंड डाई का काम वेजिटेबल कलर्स से किया जाता था, मगर अब मशीनरी रंगों से लहरिया प्रिंटिंग की जाती है। टाई एंड डाई वाले कपड़े जहां बहुत महंगे आते हैं, साथ ही बता दें मशीन प्रिंट वाले कपड़ें आपको सस्ते मिल जाएंगे। इस प्रकार, लहरिया प्रिंट राजस्थान की संस्कृति और परंपरा का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है, जो आज पूरे देश में अपनाया जा रहा है।