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Panna Dhai: राजस्थान के मेवाड़ की मां पन्नाधाय के बलिदान को आज भी पूरी दुनिया याद करती है। मां पन्नाधाय ने अपने राज्य की जान बचाने के लिए अपने बेटे की बलि चढ़ा दी थी।

Panna Dhai: गीतकार सत्य नारायण गोयंका के द्वारा गाया गया लोकगीत पूरी दुनिया में मां पन्नाधाय के बलिदान की याद दिलाता है। जिन्होंने अपने लाल को मेवाड़ की जान बचाने के लिए न्योछावर कर दिया था। राजस्थान की भूमि को हमेशा से शौर्य और पराक्रम की भूमि कहा जाता है। मेवाड़ ने देश को कई शूरवीर दिए है। यहां के सैंकड़ों वीरांगनाओं ने अपने साहस और बल से एक मिसाल कायम की है। इन्हीं शूरवीरों में से एक है पन्नाधाय। आज भी जब भी मेवाड़ के वीरांगनाओं की बात की जाती है, तब पन्नाधाय को जरूर याद किया जाता है। 

मां 'पन्ना' का इतिहास 
मां पन्नाधाय का जन्म 8 मार्च 1490 को पांडोली गांव के गुर्जर परिवार हरचंद हांकला के यहां हुआ था। वे अपने बेटे चंदन के साथ-साथ मेवाड़ के उत्तराधिकारी उदयसिंह को भी दूध पिलाती थी जिसके कारण उन्हें धाय मां के नाम से बुलाया जाने लगा। लोग उन्हें पन्नाधाय भी कहने लगें। मेवाड़ के राजा विक्रमादित्य के पुत्र उदयसिंह को दूध पिलाने से लेकर उनके पालन पोषण का काम पन्नाधाय ही करती थी। 

एक बार उदय सिंह के घराने के बनवीर ने एक साजिश से महाराजा विक्रमादित्य की हत्या करवा दी थी। इसके बाद वो उदय सिंह को मारने के लिए महल में जाने लगा, तभी उदय सिंह की माता ने अपनी दासी पन्नाधाय को उदय सिंह सौंप दिया था और उन्हें कुम्भलगढ़ के लिए रवाना कर दिया था। 

उदय सिंह को बचाने के लिए दे दी अपने बेटी की बलि 
पन्नाधाय को जैसे ही यह खबर पता चली उन्होंने बड़ी चालाकी से उदयसिंह को एक बांस की टोकरी में सुला दिया था और पत्तलों से उन्हें ढक दिया था ताकि कोई उसे देख ना पाएं। इसके बाद एक सेवक के हाथों उस टोकरी को महल के बाहर भिजवा दिया था। जैसे ही बनवीर को इस बात की जानकारी मिली वो सीधे पन्नाधाय के पास उदयसिंह को मारने के लिए पहुंचा। पन्नाधाय ने उदयसिंह के बदले अपने बेटे चंदन को पलंग पर सुला दिया था। बनवीर ने जैसे ही पूछा कि उदयसिंह कहा है तो उन्होंने पलंग की ओर इशारा किया। इसके बाद बनवीर ने पन्ना के पुत्र को उदय सिंह समझकर मार डाला।

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