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राजसमंद जिले के रेलमगरा उपखंड में एक गांव सांसेरा है जहां एक मंदिर में घी तेल नहीं बल्कि पानी से दीपक जलता है। यह मंदिर काफी ऐतिहासिक और पुराना बताया जाता है।

राजस्थान में कई ऐसी अनोखी मंदिरें हैं जिसकी चर्चाएं होती रहती हैं। इस राज्य में पुरानी मंदिरों की संख्या इतनी ज्यादा है कि इसका रहस्य जानने में दिमाग हिल जाता है। ऐसे ही राजसमंद जिले के रेलमगरा उपखंड में एक गांव सांसेरा भी आता है, जहां एक अद्भुत मंदिर है। इस मंदिर का इतिहास काफी पुराना बताया जाता है। कहा जाता है कि यह मंदिर चारों ओर से जल से घिरा हुआ है और कई मान्यताएं हैं।

नवरात्रि पर भक्तों का लगा रहता है तांता 

इस मंदिर के आसपास इतने खूबसूरत नजारें हैं जहां जाते ही आप मंत्रमुग्ध हो जाएंगे। इस जगह को लेकर लोगों के मन में इतनी आस्था है कि छह फुट से अधिक पानी में घुसकर लोग यहां तक जाते हैं और पूजा करते हैं। नवरात्रि के अवसर पर यहां भक्तों की भारी भीड़ जमा होती है। खासकर रविवार के दिन यहां पर्यटकों का तांता लगा हुआ रहता है। ऐसे में यह धार्मिक स्थल अपनी मान्यताओं को संजोए रखा है।

1300 बीघा में फैला है यह तालाब 

इस मंदिर तक जाने के लिए पथ वे का निर्माण किया गया है, जिसके दोनों तरफ रेलिंग लगे हुए हैं। इस जगह पर मूल रूप से माता जल में विराजती हैं। माता की छवि को ऊपर बनी छतरी पर उकेरा गया है। ग्रामीणों के अनुसार, यहां जो तालाब है वह 1300 बीघा में फैला हुआ है। ऐसा माना जाता है कि जल में विराजमान माता का दर्शन पाना काफी मुश्किल है। पूरे जीवनकाल में दो बार ही माता के दर्शन हो पाते हैं। 

साल में एक बार पानी से जलता है दीपक 

इस मंदिर में माता सास और बहु के रूप में विराजमान हैं। छोटी नवरात्रि के अवसर पर यहां तीन दिन मेला लगा हुआ रहता है। लोग यह मानते हैं कि साल में एक बार यहां घी तेल नहीं, बल्कि पानी से दीपक जलाया जाता है। मां की महिमा इतनी अधिक है कि कितना भी सूखा पड़ जाए, यह मंदिर का तालाब कभी नहीं सूखता। इस मंदिर का पुराना इतिहास आस्था और प्रकृति का अनूठा संगम है। आसपास के ग्रामीण यह दावा करते हैं कि कभी यहां पानी से भरा हुआ दीपक जलता था। 

यहीं पर अकबर को महाराणा प्रताप ने सिखाई थी सबक 

इस जगह के इतिहास के बारे में इतिहासकार का यह मानना है कि हल्दीघाटी का जब युद्ध हुआ था, तब अकबर ने इसी स्थान पर अपना डेरा डाला था। यहां पर चार चौंकियां बनाई गई थी। ग्रामीणों ने यह दावा किया है कि महाराणा प्रताप दो साथियों के साथ यहां आए और सोते हुए दुश्मन पर वार करने के बजाय अकबर की मूंछ काटकर उसके बाल पैरों में रख दिए। सुबह हाथ में अकबर को एक चिट्ठी और अपनी मूंछ दिखी, जिसके बाद उसे मेवाड़ छोड़ना पड़ा।

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