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Bikaner History: आज हम आपको राजस्थान के बीकानेर शहर के बारे में बताने जा रहे हैं, जहां के महाराजा गंगा सिंह के लिए खुद करणी माता युद्ध लड़ती थी। यह रहस्यमयी कहानी आपको भी जरूर जाननी चाहिए।

Bikaner History: राजस्थान का इतिहास अनेक राजाओं की कहानियों से भरा हुआ है। आज हम राजस्थान में बीकानेर के राजा गंगा सिंह की कहानी के कुछ अंश बतायेगे। गंगा सिंह ने बीकानेर में कई महत्वपूर्ण कार्य किए थे। गंगा सिंह बीकानेर के महाराजा लाल सिंह की तीसरी संतान थे। उनके बड़े भाई की मृत्यु असमय होने के कारण महाराजा गंगा सिंह को बीकानेर का राजा बना दिया गया था। सिर्फ 7 साल की उम्र में ही महाराजा गंगा सिंह का   राज्याभिषेक कर दिया गया था। यदि महाराज गंगा सिंह ना होते तो शायद राजस्थान आज भी प्यासा और बंजारा इलाका बनकर रह जाता। ये मां करणी के परम भक्त थे।

मां करणी ने महाराजा गंगा सिंह के प्राणों की रक्षा

लंदन में  साल 1910 में ब्रिटिश के साम्राज्य जॉर्ज फैक्ट्री अलबर्ट यानी कि जॉर्ज पंचम का दरबार लगा हुआ था। इस दरबार में गंगा सिंह खास तौर परीक्षा लेने के बुलाया गया था। जॉर्ज पंचम यह अच्छी तरह जानता था कि महाराज गंगा सिंह करणी माता का बहुत बड़ा भक्त हैं। जॉर्ज पंचम ने एक पिंजरा मंगवाया था। जिसके अन्दर एक खूंखार दहाड़ता हुआ शेर बन्द कर रखा था। जॉर्ज पंचम ने गंगा सिंह को भरे दरबार में शेर से लड़ने की चुनौती दी। भरे दरबार में चुनौती दी जाने के कारण गंगा सिंह ने इसे स्वीकार कर लिया था। पिंजरे में जाने से पहले महाराजा गंगा सिंह ने हाथ जोड़कर मां करणी को याद किया।

पिंजरे में महाराज को देखते ही शेर गुर्राने लगा। कहा जाता है कि महाराजा गंगा सिंह ने एक बार में ही खूंखार शेर को चित कर दिया था। इस पूरे घटनाक्रम के दौरान लोगों को चूड़ियों के खनक ने की आवाज सुनाई दे रही थी। दरबार में बैठा हर आदमी समझ गया था की, मां करणी ने स्वयं यह युद्ध लड़कर महाराज गंगा सिंह के प्राण बचाए हैं। इस घटना का जिक्र आज भी बीकानेर के इतिहास में मिलता है। ब्रिटिश महारानी ने इस गुस्ताखी के लिए खुद महाराज से माफी मांगी थी।

गंगा सिंह को केसर-ए-हिंद से नवाजा गया

महाराज गंगा सिंह दिखने में ऊंची कद-काठी और लंबी-गहरी मुंछो वाले धनी व्यक्ति थे। आज राजस्थान में उनके नाम से  यूनिवर्सिटी, नहरें और कई पब्लिक पैलेस बनाए गए हैं। बीकानेर राजघराने में सबसे ज्यादा सम्मान पाने वाले राजा गंगा सिंह ही थे। 13 अक्टूबर 1880 में जन्मे गंगा सिंह सिर्फ 7 साल की उम्र में महाराज बन गए थे। उन्हें अपने जीवन काल में केसर-ए- हिंद और 14 अलग-अलग उपाधियों से नवाजा गया था।

उन्होंने 1899 में चीन में हुए बक्सर विद्रोह को खत्म करने में अंग्रेजों की सहायता की थी। इससे खुश होकर अंग्रेजों ने गंगा सिंह को केसर एक हिंद से नवाजा था। ये बनारस हिंदू यूनिवर्सिटी के आजीवन कुलपति रहे थे। यदि महाराज गंगा सिंह ना होते तो शायद राजस्थान आज भी प्यासा और बंजारा होता।

राजस्थान का भागीरथ कहा जाता है राजा गंगा सिंह

जिस वक्त किसी को पता ही नहीं था कि नहर होती क्या है। उस वक्त उस जमाने में वह बीकानेर के लिए नहर बनवा रहे थे। राजस्थान में बार-बार अकाल पड़ने के कारण भयानक स्थिति हो जाती थी। इस स्थिति से छुटकारा पाने के कारण महाराजा गंगा सिंह ने नहर बनवाने का सोचा था। महाराजा गंगा सिंह ने ठान लिया था कि वह अपनी जनता को प्यास नहीं मरने देंगे। उन्होंने अपने इंजीनियर से बात की और उनको इंजीनियर ने बताया कि यदि पंजाब सतलुज नदी का पानी देने को तैयार हो जाता है तो यहां पानी की सुविधा हो सकती है।

1921 में रखी गई थी गंग नहर की नींव

उस जमाने में ना अच्छी मशीन थी और ना ही अच्छी टेक्नोलॉजी हुआ करती थी। भयानक गर्मी और लू की थपेड़े चलने के कारण मजदूर और जानवरों के काम करने में सबसे बड़ी समस्या हुआ करता थी। अंग्रेज भी नहीं चाहते थे कि राजस्थान में कोई नहर आए, लेकिन गंगा सिंह ने हार नहीं मानी थी। उन्होंने पंजाब से बात करके पानी देने के लिए राजी कर लिया था। साल 1921 में गंग नहर की नींव रखी गई और नहर का उद्घाटन करवाया लॉर्ड इरविन सिंह से, ताकि अंग्रेज नहर के काम में कोई बाधा ना डालें। कड़ी मशक्कत के बाद गंग नहर के जरिए गंगा सिंह बीकानेर में पानी लाने में सफल रहे।

उन्होंने लोगों को नहर के आसपास बसने और खेती करने के लिए मुफ्त जमीन दी थी। पानी आने के कारण सूखे पड़े मरुस्थल में बाहर आ गई। लोगों के मन में अकाल का डर खत्म हो गया था। यह गंग नहर राजस्थान में आने वाली पहली नहर थी। इसके बाद से राजा गंगा सिंह को राजस्थान का भागीरथ कहां जाने लगा।

बीकानेर को रेलवे लाइन से जोड़ने का काम किया

उनके राज्य में हर एक काम बहुत ही व्यवस्थित ढंग से किया जाता था। हर काम के लिए अलग-अलग डिपार्टमेंट हुआ करते थे। साल 1894 के वक्त  में भी इन्होंने PWD डिपार्टमेंट बना रखे थे। सन 1891 में उन्होंने बीकानेर को रेलवे लाइन से जुड़ने की योजना पर का काम शुरू किया। रतनगढ़ समेत कई शहरों को रेलवे से जोड़ने का काम भी उन्हीं के शासनकाल में हुआ था।अपने राज्य की रक्षा के लिए उन्होंने ऊँटों की एक बड़ी सेना तैयार की थी। इस सेना को गंगा-रिसाला कहां जाता था। ऊँटों की इस सेना ने विश्व के पहले और दूसरे विश्व युद्ध में हिस्सा लिया था। गंगा-रिसाला ने भारत और पाकिस्तान की लड़ाई में भी हिस्सा लिया था।

बनारस हिंदू यूनिवर्सिटी के आजीवन कुलपति रहे

बनारस हिंदू यूनिवर्सिटी वही यूनिवर्सिटी जिसे बनाने के लिए पंडित मदन मोहन मालवीय ने नंगे पैर चलकर दिन-भर जमीन नापी थी। यह यूनिवर्सिटी भारत की सबसे पुरानी और सबसे प्रसिद्ध यूनिवर्सिटी में से एक है। साल 1916 में इस यूनिवर्सिटी को बनाने के लिए महाराजा गंगा सिंह ने सबसे ज्यादा पैसे डोनेट किए थे और यह बनारस हिंदू यूनिवर्सिटी के आजीवन कुलपति रहे थे। यह शिक्षा को लेकर बहुत ज्यादा सजग राजा थे।

गंगा सिंह ने लालगढ़ पैलेस मां करणी के परम भक्त थे

महाराज गंगा सिंह बीकानेर राजघराने की आराध्य देवी मां करणी के परम भक्त थे। देशनोक के करणी माता मंदिर का रिनोवेशन इन्होंने ही करवाया था। इस मंदिर पर चांदी के दरवाजे लगवाए थे। चूहों के प्रसाद के लिए भी चांदी के बड़े-बड़े थाल लगवाएं। रामदेवरा में पीरों के पीर बाबा रामदेव का विश्व प्रसिद्ध मंदिर का  रिनोवेशन करवाया। जाहरवीर गोगाजी के गोगामेड़ी मंदिर को बनवाने का श्रेय भी उन्हीं को जाता है। गंगा सिंह ने बीकानेर की खूबसूरती में चार चांद लगाने में कोई कसर नहीं छोड़ी। उन्होंने अपने पिता लाल सिंह की याद में लाल पत्थरों से एक सुंदर पैलेस बनवाया था। जिसे लालगढ़ पैलेस कहते हैं।

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