Rajasthan Diwas: जयपुर का राजस्थान की राजधानी बनने का इतिहास काफी पुराना है। एकीकरण के समय राजस्थान राज्य सात चरणों का गवाह बना था। 18 मार्च 1948 को 'मत्स्य संघ' के रूप में इसकी शुरुआत हुई थी। जिसके बाद 1 नवंबर 1956 को राजस्थान राज्य का गठन किया गया था। इस एकीकरण में तीसरी चरण बेहद महत्वपूर्ण है, क्योंकि इस दौरान ‘राजस्थान संघ' में उदयपुर रियासत का विलय हुआ था।
इतना ही नहीं इसका नाम बदलकर ‘संयुक्त राजस्थान' रखा गया था। उदयपुर के शासक महाराणा भूपालसिंह मेवाड़ के 20 लाख लोगों की मां के अनुरूप इस विलय को मंजूरी दी गई थी। 23 मार्च 1948 को महाराणा ने प्रधानमंत्री सर राममूर्ति को इस संबंध में दिल्ली भेजा। यहां उन्होंने तत्कालीन गृहमंत्री सरदार पटेल के अधीन एकीकरण का कार्य देख रहे वीपी मेनन से मुलाकात की। इस मुलाकात में उन्होंने भारत सरकार के आगे कुछ शर्तें गखी। इनमें से एक शर्त थी कि उदयपुर को संयुक्त राजस्थान की राजधानी होना चाहिए।
उदयपुर को बनाया गया था राजस्थान का कैपिटल
18 अप्रैल, 1948 को स्वतंत्र भारत के पहले पीएम पंडित जवाहरलाल नेहरू की उपस्थिति में उदयपुर को राजस्थान की राजधानी माना गया था। इसके लिए उदयपुर के फतेह प्रकाश पैलेस के दरबार के हॉल में विलय पत्र पर हस्ताक्षर भी किए गए थे।
इसके बाद राजस्थान संघ के नाम में बदलाव किया गया और इसे ‘संयुक्त राजस्थान' के नाम से जाने लगा। वहीं राज्य का राजप्रमुख महाराणा भूपालसिंह को बनाया गया था और प्रधानमंत्री के रूप में माणिक्यलाल वर्मा को चुना गया। मेवाड़ के शामिल होने के समय उदयपुर को ही राजस्थान का कैपिटल बनाया गया था।
उदयपुर से जयपुर कैसे बनी राजधानी
मेवाड़ के राजपरिवार के दस्तावेजों के अनुसार14 जनवरी, 1949 को सरदार वल्लभभाई पटेल उदयपुर का दौरा करने आए थे। इसके दो महीने बाद 30 मार्च 1949 को मेवाड़ के नेतृत्व में बड़ी रियासतों की ओर से विलय पत्र पर हस्ताक्षर किए गए थे। जिसके बाद राजस्थान को एक नया राज्य का दर्जा दिया गया।
साथ ही जयपुर को नई राजधानी के रूप में स्थानांतरित किया गया। इस दौरान जयपुर के महाराजा सवाई मान सिंह को राज-प्रमुख और महाराणा भूपाल सिंह को आजीवन महाराज-प्रमुख नियुक्त किया गया। इसी कारण से हर साल 30 मार्च को राजस्थान दिवस के रूप में हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है।