Rajasthan Folk Deities: राजस्थान के लोक देवता जिनकी राजस्थान में पंच पीरों के नाम से पूजा की जाती है। यहां लोक जीवन में कई महान पुरुष हुए, जो देवता के रूप में सदा के लिए अमर हो गए। इन लोक देवताओं में कुछ को पीर की संज्ञा दी गई है। रंग-बिरंगा राजस्थान राज्य अपनी संस्कृति और कला, खान-पान, भव्य महलों और ऐतिहासिक किलों के लिए जाना जाता है। इस प्रकार राजस्थान अपने लोक देवताओं के लिए भी पहचाना जाता है।
राजस्थान के लोक देवता ऐसे महापुरुष हुए जिन्होंने समाज में रहते हुए अपने चमत्कारिक कार्यों से समाज को नई ऊर्जा व दिशा दी। इन कारण की वजह से यहां के स्थानीय लोग इनको देवता के रूप में पूजने लगे। पंच पीर राजस्थान के लोक देवताओं में सबसे महत्वपूर्ण और पूजनीय माने जाते हैं। इन पंच पीरों में सबसे पुराने गोगाजी है और पाबू जी को प्रथम पूजनीय माना जाता है। इन्हें मारवाड़ के पंच पीर कहा जाता है। यह सभी पंच पीर राजपूत जाती से संबंधित है। इन पांच पीरों में इन पांच महापुरुषों के नाम शामिल है।
गोगाजी
गोगा जी का जन्म चूरू के ददरेवा में हुआ था। इनके पिता का नाम जेवर सिंह और माता का नाम बाछन दे था। इनकी पत्नी का नाम केमल दे था। गोगा जी के बारे में बताया जाता है कि यह अपने चचेरे भाइयों अर्जन और सर्जन से भूमि विवाद में लड़ते हुए वीरगति को प्राप्त हुए थे और इनका सिर जहां पर गिरा उस स्थान को शीर्ष मेड़ी एवं धड़ जिस स्थान पर गिरा उसे धुरमेडी कहा जाता है। शीर्षमेडी चूरू के ददरेवा और धुरमेडी हनुमानगढ़ के गोगामेड़ी (नोहर) में है। गोगा जी के मंदिर में 11 महीने मुस्लिम पुजारी और एक महीने हिंदू पुजारी पूजा करते हैं।
गोगा जी ने महमूद गजनवी से गायों की रक्षा के लिए युद्ध लड़ा था। गोगामेडी में दिल्ली के सुल्तान फिरोज शाह तुगलक ने गोगा जी का मंदिर बनवाया। इस मंदिर को वर्तमान स्वरूप महाराजा गंगा सिंह ने दिया था। गोगा जी की याद में किसान बरसात के बाद बुवाई के समय हल व हाली को 9 गाठों वाली गोगाराखी बांधते हैं। इन्हे सापों के देवता और गौरक्षक देवता के नाम से जाना जाता है। गोगा जी को महमूद गजनवी ने जाहरवीर नाम दिया था।
पाबू जी
पाबू जी राठौड़ राजस्थान के लोकप्रिय देवता हैं। इनका जन्म जोधपुर के कोलू गांव में हुआ था। इनका का विवाह अमरकोट की रहने वाली सोढ़ा राणा सूरजमल की बेटी के साथ हुआ था। इनकी घोड़ी का नाम केसर कालमी था। इनके बारे में कहा जाता है कि बाबूजी ने अपनी शादी के लिए धर्म बहन से घोड़ी ली थी। वचनबद्ध पाबू जी ने देवल चारणी की गायों की रक्षा के लिए अपने प्राणों की आहुति दे दी। पाबू जी को लक्ष्मण जी का अवतार माना जाता है राजस्थान में ऊंट के बीमार होने तथा होठों की देवता के रूप में आज भी बाबूजी की पूजा की जाती है।
रामदेव जी
रामदेव जी को समाज सुधारक लोक देवता के रूप में जाना जाता है। यह एक लोक देवता ही नहीं बल्कि एक कवि भी थे। मल्लिनाथ ने इन्हें पोकरण की जागीर प्रदान की थी। रामदेव जी को मक्का से आए पीरों ने पांच पीरों में पीरों का पीर कहा है। इनका मंदिर रामदेवरा जैसलमेर में है। उनके पिताजी का नाम अजमल जी और माता का नाम मेरा मैणा दे था। इनकी पत्नी का नाम नैतल दे था। ये जाति से एक राजपूत थे। इन्हें भगवान कृष्ण का अवतार माना जाता है। रामदेव जी ने जिस स्थान पर भैरव राक्षस का वध किया था, उस स्थान को भैरव बावड़ी कहा जाता है। इनका मेला भाद्रपद शुक्ल द्वितीय से भाद्रपद शुक्ल एकादशी तक लगता है।
मेहाजी
मेहाजी मांगलिया, राजस्थान के लोकदेवता थे। मेहाजी मांगलिया को मांगलियों का ईष्ट देव माना जाता है। इनका जन्म जोधपुर ज़िले के ओसिया के पास तापू गांव में हुआ था। इनके पिता जी का नाम केलु था । यह एक घोड़े की सवारी किया करते थे, जिसका नाम किरड काबरा था। इनका मंदिर बापणी जोधपुर में बना हुआ है। मेहा जी मंदिर के पुजारी की वंश वृद्धि नहीं होती है। इनका मेला बापणी में भाद्रपद कृष्ण अष्टमी को लगता है। ये रानगदेव भाटी से युद्ध करते हुए वीरवती को प्राप्त हुए थे।
हड़बूजी
इनका जन्म नागौर के भुंडोल गांव में हुआ था। इनके पिता का नाम महाराज सांखला था। ये जाति से सांखला राजपूत थे। इनके गुरु का नाम बालीनाथ जी था। ये सियार की सवारी किया करते थे। इन्हे वचनसिद्ध पुरुष कहा जाता है। इनको शकुन शास्त्र के ज्ञाता के नाम से जाना और पूजा जाता है। हड़बूजी मारवाड़ शासक राम जोधा के समकालीन रहे थे। इनको भविष्य दृष्टा भी कहते थे, क्योंकि हड़बूजी में भविष्य देखने की दिव्य शक्तियां थी। मारवाड़ पर 1438 से 1453 ई तक मेवाड़ का शासन रहा, इसी समय मेवाड़ का शासक महाराणा कुंभा था ।
राव जोधा मारवाड़ जीतने का प्रयास कर रहा था, तब हड़बूजी ने राव जोधा की सहायता की और उन्हें आशीर्वाद दिया। जब जोधा मारवाड़ को पुन प्राप्त करने में सफल हुआ तो उसने हड़बूजी को बेंगटी गांव प्रदान किया गया था। इनका मंदिर बेंगटी गांव फलोदी, जोधपुर में स्थित है। जहां पर हड़बूजी की गाड़ी की पूजा की जाती है, क्योंकि इसी गाड़ी में हड़बूजी पंगु गायों के लिए घास लाते थे।जोधपुर के महाराज अजीत सिंह ने 1721 ईस्वी में हड़बूजी के मंदिर का निर्माण करवाया था।
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