Rajasthan Gogaji Story: राजस्थान में प्राचीन समय से ही लोक देवताओं को पूजने की परंपरा चली आ रही है। राजस्थान के लोगों की लोक देवताओं में आस्था की परंपरा इतनी कि कोई उन्हें पीर मानकर पूजती है, तो कोई इन्हे देवता मानकर पूजता है। आज हम एक ऐसे लोक देवता के बारे में बताएंगे जिनकी मूर्ति राजस्थान के गांव-गांव में खिचड़ी वृक्षों के नीचे पाई जाती है। वह लोक देवता और कोई नहीं गोगाजी है।
लोग गोगाजी को मानते हैं सांपों का देवता
गोगाजी में राजस्थान के लोगों की आस्था इतनी है की कुछ भी समस्या आने पर गोगाजी को याद करते हैं। गोगाजी को जिंदा पीर (जाहर पीर)के नाम से भी जाना जाता है और लोग इन्हें सांपों का देवता मानकर भी पूछते हैं। राजस्थान के गोगाजी का जन्म गुरु गोरखनाथ के वरदान से हुआ था। गोगाजी की मां बाछल देवी के कोई संतान नहीं थी। संतान प्राप्ति के लिए बाछल देवी ने जगह-जगह मंदिरों में पूजा की किंतु हर जगह जाने के बाद भी उनके कोई संतान नहीं हुई।
कैसे पड़ा गोगाजी नाम
एक बार की बात है जब गुरु गोरखनाथ गोगामेड़ी टीले पर तपस्या कर रहे थे। तब गोगा जी की मां उनके पास गई और अपनी संतान न होने की व्यथा उनको सुनाएं। तब गुरु गोरखनाथ ने बाछल देवी को पुत्र प्राप्ति होने का वरदान दे दिया। गोरखनाथ ने बाछल देवी को एक गूगल फल आशीर्वाद के रूप में दिया और कहा की इस फल को खाकर तुम गर्भवती हो जाओगी। उसको खाने के कुछ महीनों बाद गोगा जी का जन्म हुआ। गूगल फल खाने के कारण इस लोक देवता का नाम गोगाजी पड़ गया।
यहां लगता है गोगाजी का मेला
आज गोगाजी की राजस्थान के गांव में पूजा की जाती है। राजस्थान में किसान खेत जोतने से पहले गोगाजी देवता के नाम की राखी अपने हल को बांधता है। गोगाजी का थान खेजड़ी वृक्ष के नीचे होता है। गोगाजी की मूर्ति एक पत्थर पर अंकित होती है। इस पत्थर पर एक सर्प की आकृति उकेरी हुई होती है। गोगाजी की मूर्ति गांव में खेजड़ी पेड़ के नीचे मिलती है। राजस्थान में जालौर जिले के सांचौर में गोगाजी का मंदिर है। जिसे गोगाजी की ओल्डी(झोपड़ी) कहा जाता है। इस जगह पर हर साल भाद्रपद कृष्ण नवमी को गोगामेड़ी (नोहर,हनुमानगढ़ ) में गोगा जी का मेला लगता है।
गोगाजी की पीर के रूप में की जाती इबादत
गोगाजी की पीर के रूप में इबादत की जाती है, क्योंकि जब गोगा जी की लड़ाई अपने मौसेरे भाई अर्जुन चौहान और सुर्जन चौहान के साथ हुई थी। तब अर्जुन और सुरजन ने मुसलमान की सेना साथ लेकर गोगाजी पर आक्रमण कर दिया। मुसलमान की सेना गोगा जी की गायों को घेर लिया। उस सेना का विरोध करने के लिए गोगा जी ने चपल युद्ध किया।
उन्होंने युद्ध इस तरह किया कि वे मुसलमान की सेना को हर तरफ दिखाई देने लगे थे। गोगा जी के युद्ध कौशल को देखकर एक बार महमूद गजनवी ने कहा था। यह तो साक्षात जाहीरा पीर है। जाहीरा पीर का मतलब देवता के समान होता है। इसलिए लोग गोगाजी को जाहीर पीर के नाम से भी पूजते हैं। मुस्लिम लोग गोगा जी को गोगा पीर मानकर इबादत करते हैं
गोगाजी का विवाह
गोगाजी का विवाह मेनल नाम की लड़की से हुआ था। केलमदे मेनल का दूसरा नाम था। मेनल बूडोजी की बेटी और कोलू मंड की राजकुमारी थी। जब मेनल का गोगा जी के साथ विवाह होने वाला था, तो उससे पहले ही मेनल को सांप ने डंस लिया। तब गोगाजी ने मेनल को बचाने के लिए मंत्र पड़े और मंत्र पडते ही सारे नाग कढ़ाई में आकर गिरने लगे। तब स्वयं नाग देवता ने प्रकट होकर मेनल का जहर निकला। नाग देवता ने गोगा जी को सांपों का देवता होने का वरदान दिया। इसलिए सर्प दंश के लिए भी गोगाजी का आह्वान किया जाता है।
गोगाजी और महमूद गजनवी का युद्ध
गोगाजी ने महमूद गजनवी से अपने 47 पुत्र और 60 भतीजे के साथ युद्ध लड़ा था। इस युद्ध में गोगाजी ने महमूद गजनवी से युद्ध करते हुए अपने 47 पुत्र और 60 भतीजे के साथ अपने प्राणों का बलिदान दे दिया था। युद्ध करते हुए गोगामेडी में जहां गोगाजी का शरीर गिरा था, वहां आज भी उनकी समाधि बनी हुई है। यह समाधि राजस्थान के हनुमानगढ़ जिले के नोहर तहसील में है।
इस जगह पर गोरख तालाब भी स्थित है। युद्ध करते हुए जहां गोगाजी का सिर गिरा था उस स्थान को शीशमेडी , जहां पर उनका शरीर गिरा था उसे गोगामेडी कहा जाता है। गोगाजी के जन्म स्थल ददरेवा को शीशमेडी और समाधि स्थल को गोगामेडी भी कहते हैं। गोगाजी को हिंदू-मुस्लिम दोनों धर्म के लोग पूजते हैं। गोगाजी भोपे डेरु वाद्य यंत्र का प्रयोग किया करते थे।
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