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Rajasthan History: इतिहास गवाह है कि भारत की धरती ने अनेक बड़े युद्ध देखें, जिसमें से अधिकतर युद्ध राजस्थान के राजपूत और मुगलों के बीच हुए। उन्हीं में से एक युद्ध था हल्दीघाटी का युद्ध।

Rajasthan History: हल्दीघाटी भारत के इतिहास के सबसे प्रसिद्ध युद्ध के मैदानों में से एक है। जब भारतीय इतिहास के युद्धों का जिक्र होता है, हल्दीघाटी का नाम सबसे पहले लिया जाता है। यह इतिहास का वह वर्णन है जहां आज भी युद्ध की निशानियां देखने को मिलती हैं। आइए जानते हैं हल्दीघाटी के इस रणभूमि के इतिहास के बारे में विस्तार से।

ऐतिहासिक पृष्ठभूमि :

अगर ऐतिहासिक पृष्ठभूमि को देखा जाए, तो यह वह समय था जब मुगल बादशाह हुमायूं की मृत्यु के बाद अकबर दिल्ली सल्तनत की गद्दी पर बैठ चुका था। अकबर अपने सिंहासन पर काबिज होते ही राजस्थान के मेवाड़ इलाके को छोड़कर बाकी सभी इलाकों के राजपूतों से संधि करने में कामयाब हो गया था। लेकिन एक रियासत जो अभी उसकी शक्ति के सामने झुकने से इनकार कर रही थी, वह रियासत थी मेवाड़। इस समय मेवाड़ का शासन महाराणा प्रताप के हाथों में था। अकबर की विस्तारवादी नीति और महाराणा प्रताप की न झुकने की कसम ने इतिहास के एक बड़े युद्ध का मैदान तैयार कर दिया।

हल्दीघाटी का युद्ध:

इतिहास में जितने भी राजपूत योद्धा हुए, उनका किसी न किसी युद्ध से जरूर संबंध रहा। युद्ध और योद्धा इतिहास की किताबों में एक-दूसरे के पर्यायवाची माने गए हैं। इसीलिए इतिहास में जितने भी योद्धा हुए, उनका किसी न किसी युद्ध से जरूर संबंध रहा। ऐसे ही एक योद्धा थे महाराणा प्रताप, जिनका संबंध हल्दीघाटी के युद्ध से है।

हल्दीघाटी का युद्ध 18 जून 1576 ई. को महाराणा प्रताप और मुगलों के बीच लड़ा गया था, जिसमें अकबर का प्रतिनिधित्व करते हुए मानसिंह ने महाराणा प्रताप के खिलाफ युद्ध किया। इस युद्ध में जहां महाराणा प्रताप की ओर से कुछ हजार सैनिक थे, वहीं दूसरी ओर मुगलों की ओर से एक लाख से भी अधिक सैनिक युद्ध के मैदान में उतरे थे। लेकिन फिर भी इस युद्ध में मुगलों को पूरी तरह से जीत हासिल नहीं हो पाई।

महाराणा प्रताप बनाम मुगल सेना:

इतिहासकारों की मानें तो यह युद्ध इतना भीषण था कि युद्ध की शुरुआत होते ही कुछ ही घंटों में पास का एक तालाब रक्तरंजित हो गया। बताया जाता है कि महाराणा प्रताप की मुट्ठीभर सेना ने मुगलों की सेना को काफी नुकसान पहुंचाया। इस युद्ध में महाराणा प्रताप अपने घोड़े चेतक पर सवार होकर युद्ध कर रहे थे। बताया जाता है कि महाराणा प्रताप ने अपने घोड़े चेतक के मुंह पर सूंड बांध दी थी, जिससे मुगल सेना के हाथी भ्रमित हो रहे थे।

मुगल सैनिकों से लड़ते-लड़ते महाराणा प्रताप सीधे मानसिंह के सामने पहुंच गए। मानसिंह पर वार करने के लिए प्रताप अपने घोड़े के साथ आगे बढ़े। चेतक ने मानसिंह के हाथी की सूंड पर अपने पैर टिका दिए और महाराणा प्रताप ने अपने भाले से मानसिंह पर वार किया। लेकिन मानसिंह हाथी पर बनी छतरी में छिप गया। इसी क्रम में मानसिंह के हाथी की सूंड में बंधी तलवार से चेतक का पिछला पैर बुरी तरह से जख्मी हो गया।

मानसिंह ने की मुगलों की अगुवाई: 

युद्ध में मुगलों की कमजोर पड़ती स्थिति को देखते हुए मुगल बादशाह अकबर ने स्वयं युद्ध में शामिल होने का ऐलान किया। इससे मुगल सैनिकों का मनोबल बढ़ा और उन्होंने महाराणा प्रताप को घेरने का प्रयास किया। इस समय प्रताप के शरीर पर कई चोटें आ चुकी थीं और उनकी स्थिति नाजुक हो चुकी थी। ऐसी स्थिति को देखते हुए झाला मन्ना ने प्रताप से उनकी जगह लेने की बात कही।

हालांकि, प्रताप इसके लिए तैयार नहीं थे, लेकिन मेवाड़ के योद्धाओं ने उन्हें समझाकर युद्ध के मैदान से बाहर भेज दिया। झाला मन्ना ने महाराणा का मुकुट पहनकर उनकी जगह युद्ध किया और वीरगति को प्राप्त हो गए। झाला मन्ना के मरते ही मुगलों को लगा कि प्रताप का अंत हो गया और हल्दीघाटी का युद्ध यहीं समाप्त हो गया।

कौन जीता?

इस युद्ध में अकबर की सेना को भारी क्षति पहुंची थी। इसी वजह से अकबर मेवाड़ पर पूरी तरह कब्जा स्थापित करने में नाकाम रहा। हालांकि, मेवाड़ के कुछ हिस्सों में उसने अपना अधिपत्य स्थापित कर लिया। वहीं दूसरी ओर महाराणा प्रताप इस युद्ध से सुरक्षित बच गए और उन्होंने आगे चलकर दिवेर के युद्ध में अकबर के खिलाफ एक नए संघर्ष का आगाज किया।

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