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Rajasthan history: राजस्थान के जोधपुर शहर के मंडोर गांव में होती है रावण की पूजा। कहा जाता है रावण और मंदोदरी का विवाह यहीं हुआ था। चलिए बताते हैं इससा जुड़ा इतिहास।

Rajasthani History: आपने राजस्थान के शाही शासन और ऐतिहासिक कथा के बारे में सुना ही होगा, लेकिन आज हम आपको एक ऐसी‌ कहानी सुनाएंगे, जिसे सुनकर आप हैरान रह जाएगें। आपने रामायण में रावण को देखा होगा, लेकिन यह नहीं पता होगा की रावण का संबंध राजस्थान के जोधपुर से भी है। जोधपुर शहर के  मंडोर में रावण और मंदोदरी का विवाह हुआ था। यहां वर्तमान समय में भी रावण को भगवान के तरह पूजा जाता है। वहीं जोधपुर में श्रीमाली ब्राह्मण समाज के लोग आज भी खुद को रावण का वंशज बताते हैं, तो आइए जानते हैं उन तथ्यों के बारे में। 

ऐसा कहा जाता है कि रावण का ससुराल राजस्थान के जोधपुर में है। महारानी मंदोदरी जोधपुर के मंडोर के राजा की पुत्री थी, जिनका शादी रावण से हुआ था। मान्यता के अनुसार कहा जाता है कि जब रावण बारात लेकर मंडोर पहुंचे थे, तब उनके साथ श्रीमाली ब्राह्मण भी आए थे। लेकिन जब बारात वापस गई, तो श्रीमाली ब्राह्मण जोधपुर में ही रह गए थे। इसलिए आज भी इस समाज के लोग रावण को जोधपुर के दमाद और खुद को रावण का वंशज मानते हैं। इसी वजह से ये दशहरा पर रावण दहन नहीं करते हैं, बल्कि उनका शोक मनाते हैं। ये लोग रावण का भगवान की तरह पूजा करते हैं।

श्रीमाली ब्राह्मण हैं रावण का वंशज

दरअसल राजस्थान के गोदा गोत्र के श्रीमाली ब्राह्मण समाज के लोग खुद को रावण के वंशज मानते हैं और मंडोर को रावण का ससुराल। यहां इस गोत्र के करीब 100 से ज्यादा और फलोदी में 60 से अधिक परिवार रहते हैं, जो मानते हैं कि वे रावण के वंशज। ये लोग रावण के मंदिर में यज्ञोपवित संस्कार व पूजन करते हैं। 

कहां है रावण का मंदिर 

बता दें कि श्रीमाली ब्राह्मण समाज ने मेहरानगढ़ की तलहटी में 2008 में रावण मंदिर का स्थापना करवाया था। इस मंदिर में रावण-मंदोदरी का एक साथ शिव की पूजा करते हुए विशालकाय प्रतिमा स्थापित की गई है। 

दशहरे पर नहीं होता यहां रावण दहन 

बता दे कि जोधपुर के रावण मंदिर के आस पास लगभग 500 मीटर के अंदर रावण दहन नहीं किया जाता है और न ही वहां के लोग रावण दहन देखने के लिए जाते हैं। बल्कि इस गांव में शोक मनाते हैं। वहीं इस समाज के लोगों का मान्यता है कि भले ही रावण को बुराई का प्रतीक माना जाए, लेकिन उनके पूर्वजों ने रावण की पूजा-अर्चना किए हैं। क्योंकि रावण बहुत ही विद्वान और संगीतज्ञ थे। जब उनके पूर्वजों ने रावण को भगवान के तरह मानते थे तो ये भी रावण की पूजा करते चले आ रहें है।

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