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Rajasthan History: जब भी राजस्थान के राजाओं की बात होती है हाथों में तलवार लिए युद्ध करते योद्धाओं की छवियां हमारे मन में बनने लगती है, लेकिन राजस्थान में एक ऐसे भी शासक हुए जिन्होंने युद्धों से ज्यादा ज्ञान के प्रति अपने समर्पण के कारण प्रसिद्ध पाई थी।

Rajasthan History: आमेर राज्य के 29वें कछवाहा राजपूत शासक सवाई जयसिंह द्वितीय थे, जिन्होंने अपनी राजधानी आमेर से जयपुर स्थानांतरित कर दी थी। इन्होंने जयपुर के किलाबंद शहर की स्थापना की और तत्पश्चात इसे अपनी राजधानी बनाया। सवाई जयसिंह द्वितीय बहुत ही कम आयु में अपने पिता का कार्यभार संभालने लगे थे, क्योंकि जब इनकी आयु 11 वर्ष थी तभी इनके पिता राजा बिशन सिंह का निधन हो गया था।

जयसिंह ने अपने शासनकाल में जयपुर को एक मजबूत राज्य बनाने का प्रयास किया और अपने शत्रुओं से बचाए रखा। वे अपने समकालीन लोगों में सर्वश्रेष्ठ थे, और इसी कारण औरंगजेब द्वारा इन्हें "सवाई" की उपाधि दी गई थी।

अपने कार्यों के लिए मिली कई उपाधियां

मुगल काल में सवाई जयसिंह द्वितीय शुरुआत में मुगल साम्राज्य की एक जागीरदार के तौर पर काम करते थे। दक्कन के खेलना किले की घेराबंदी के समय औरंगजेब ने उन्हें "सवाई" की उपाधि दी थी। इसके अलावा, उनके कार्यों के लिए उन्हें कई उपाधियां मिलीं, जिनमें राज राजेश्वर, श्री राजाधिराज, महाराजा सवाई, सरमद-ए-राजा-ए-हिंदुस्तान आदि शामिल थीं। कुछ समय बाद वे मुगलों की अधीनता से मुक्त भी हो गए थे।

जयपुर भी एक स्वतंत्र राज्य है इस बात को पुख्ता करने के लिए इन्होंने एक प्राचीन अनुष्ठान अश्वमेध यज्ञ करवाया, जिसे कई शताब्दियों पहले ही बंद कर दिया गया था। 1727 में जयपुर को राजधानी बनाने के पश्चात उन्होंने दो और अश्वमेध यज्ञ किए।

अलग-अलग कार्य क्षेत्रों में थी रुचि

जयसिंह को प्रशासन और राज्यशिल्प के अलावा वास्तुकला, खगोल विज्ञान, गणित, ज्योतिष तथा साहित्य के क्षेत्र में विशेष रुचि थी। इसी कारण उन्होंने जयपुर सहित भारत के कई स्थानों पर जंतर-मंतर वेधशालाएं बनवाईं। यूक्लिड के एलीमेंट्स ऑफ ज्योमेट्री का संस्कृत में अनुवाद भी उन्होंने ही करवाया था।

सेना की थी अत्यंत दयनीय स्थिति

राज्याभिषेक के बाद उन्हें पता चला कि उनकी सेना की स्थिति अत्यंत दयनीय है। उनकी सेना में बहुत ही कम सैनिक बचे थे और संसाधन भी सीमित मात्रा में थे। इसके पीछे मुख्य कारण यह था कि जयपुर के राजाओं ने औरंगजेब के साथ हथियारों की तुलना में कूटनीति को प्राथमिकता दी थी। जयपुर के राजा कूटनीति को इसलिए महत्व देते थे क्योंकि उनका राज्य आगरा और दिल्ली के मुगल सत्ता केंद्रों के बहुत पास स्थित था और वे मुगल साम्राज्य से बैर नहीं रखना चाहते थे।

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