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Rajsamand History: राजस्थान के इतिहास में अनेक महान राजाओं की कहानी लिखी हुई है, जो यहां की धरोवर है। तो आज हम बताएंगे आपको राजसमंद और राजा राजसिंह के अनसुने किस्से। 

Rajsamand History: राजस्थान का इतिहास अनेक राजाओं की कहानियों से भरा हुआ है। ऐसे ही एक महान राजा राजसिंह के कुछ अंश बतायेगे। इनके पूर्वज महाराणा प्रताप और महाराणा सांगा थे। ये एक ऐसे योद्धा थे जिनके नाम मात्र से ही मुगल औरंगज़ेब कांप उठाता था।

राजसिंह के समय की घटना

राजा राजसिंह किशनगढ़ की राजकुमारी चारुमति से विवाह किया था, जिससे औरंगजेब शादी करना चाहता था। इन्होंने राजसमंद की स्थापना और औरंगजेब के द्वारा लगाए गए जजिया कर का विरोध किया था। इन्हें बहुत बड़े दानवीर और एकलिंग भक्ति के रूप में भी जाना जाता है। 

इनके कारण ही इनके सेनापति की पत्नी सलह कवंर में अपना सिर काटकर निशानी के रूप में अपने पति को भेज दिया था। इन्होंने मेवाड़ मुगल संधि के विरुद्ध जाकर चित्तौड़गढ़ किले का जीर्णोधार करवाया था। इन्होंने ही नाथद्वारा में स्थित मूर्ति श्री नाथ जी की मूर्ति और कांकरोली में स्थित चारभुजा जी की रक्षा मुगलों से की थी। 

राणा की उपाधि

राजसिंह का जन्म 24 सितंबर 1629 को मेवाड़ के गुहिल वंश में राजनगर में हुआ था। इनके पिता का नाम महाराणा जगत सिंह था। मात्र 23 वर्ष की आयु में इनका राज्यअभिषेक कर दिया गया था। यह जनता के प्रिय-वीर, कला - प्रेमी और कुशल प्रशासक राजा थे। 

इनके पिता की मृत्यु के बाद ही इन्हें मेवाड़ का शासक बनाया गया था। राजा बनने के बाद मुगल बादशाह शाहजहां ने 5000 जाट सैनिकों के साथ इनको हाथी, घोड़े भेंट किए और मुगल शाहजहां के द्वारा ही इन्हें राणा की उपाधि दी गई थी।

चित्तौड़गढ़ किले का पुन:निर्माण 

राजा बनते ही इन्होंने अपने पिता के शुरू करवाए हुए कार्य को पूरा करवाया। मुगलों द्वारा एक संधि की गई थी। इस संधि में लिखा था चित्तौड़गढ़ किलो को मेवाड़ को सौंप दिया जाएगा, किंतु इसका दोबारा निर्माण नहीं करवाया जाएगा। 

इसके बाद राजा जगत सिंह ने इस किले की मरम्मत करवाई और कार्य सुचारू रूप से जारी रखा। इस कारण शाहजाह बहुत नाराज था। पिता की मृत्यु के बाद भी इस कार्य को राजसिंह ने  पूरा करवाया। इस बात का पता जब शाहजाह को लगा तो उसने पूरे किले को ढ़हा दिया। राजसिंह ने बदला लेने के लिए  मेवाड़ में और मेवाड़ की सीमा के बाहर जितने भी मुगल थाने थे सबको लूट लिया था।

राजसमंद झील का निर्माण 

सन 1664 ई में उदयपुर में अम्बा माता का मंदिर और कांकरोली में राजसिंह ने  1662 में राजसमंद झील का निर्माण करवाया था। यह झील राज्य की एकमात्र कृत्रिम झील है। इस झील में गोमती नदी का पानी गिरता है। इस झील के नाम पर ही राजसमंद जिले का नाम पड़ा था। 

राज्य की सरकार ने धार्मिक दृष्टि से इस झील को पवित्र झील घोषित कर दिया था। इसके उत्तरी भाग को नौचौकी कहते हैं, जहां रणछोड़ भट्ट द्वारा संस्कृत भाषा में 25 शिलालेख लिखे गए हैं। इन शिलालेखों में मेवाड़ का इतिहास लिखा है, इन्हें राजप्रशस्त के नाम से जाना जाता है।

राजा के लिए क्षत्राणी ने काटा सिर 

राजसिंह के सेनापति रतनसिंह की पत्नी सहल कवंर ने अपना सिर काटकर अपने पति को भेज दिया था। जिन्हे रानी हाड़ी के नाम से जाना जाता था। रतनसिंह चूड़ावत सलूम्बर के सामंत हुआ करते थे। सहल कवंर और रतनसिंह की शादी दो दिन पहले हुई थी। 

रतनसिंह के पास युद्ध का पैगाम आया, लेकिन रतनसिंह ने युद्ध में जाने से मना कर दिया था। इन सब के बारे में सहल कवंर को पता पड़ा कि उनके पति ने युद्ध करने से मना कर दिया है, तो उन्होने अपने पति को समझाकर युद्ध के लिए तैयार किया और सहल कवंर ने युद्ध में जाने से पहले निशानी के तौर पर अपना सिर काटकर अपने पति को दे दिया था।

राजसिंह और चारुमति की प्रेम कहानी

राजा राजसिंह ने ऐलान करवा रखा था कि यदि किसी हिंदू राजकुमारी के साथ मुगलों द्वारा जबरदस्ती शादी की जाती है, तो वह उन्हें बचाने अवश्य आएंगे। एक बार रुपनगढ़ की राजकुमारी चारुमति ने औरंगजेब की तस्वीर को अपने पैरों से कुचलकर तोड़ दिया था। इसके बारे में जब औरंगजेब को पता पड़ा तो उसने चारुमति से शादी करने की ठान ली। 

इसके बाद चारुमति से शादी करने का प्रस्ताव उसके पिता को भिजवा दिया, लेकिन चारुमति इस शादी के खिलाफ थी। इस वजह से चारुमति ने राजा राजसिंह को एक पत्र लिखा था, जिसमें उन्होंने लिखा की, जिस तरह श्री कृष्ण रुक्मणी का हरण करके ले गए थे, उसी प्रकार आप मेरा हरण करके ले जाइए, नहीं तो मैं अपनी जान ले लूंगी। राजकुमारी का पत्र देखकर राजसिंह ने औरंगजेब के खिलाफ जाकर ऐसा ही किया।

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