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History Of Puppet: कठपुतली कला का इतिहास सैकड़ों साल पुराना है। इस कला का प्राचीनतम उल्लेख राजस्थान में 500-1000 साल पहले मिलता है।

History Of Puppet: कठपुतली का खेल राजस्थान की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत का एक अनमोल हिस्सा है। यह सिर्फ एक मनोरंजन का साधन नहीं है, बल्कि इसके पीछे एक विशेष समुदाय की पहचान, परंपरा और इतिहास छिपा हुआ है। यह समुदाय अपने अनोखे कठपुतली कला के लिए भारत के साथ-साथ विश्वभर में प्रसिद्ध है। आइए जानते हैं राजस्थान के इस अनोखे समुदाय और कठपुतली के खेल के रोचक इतिहास के बारे में।

कठपुतली कला का उद्गम और इतिहास

कठपुतली कला का इतिहास सैकड़ों साल पुराना है। इस कला का प्राचीनतम उल्लेख राजस्थान में 500-1000 साल पहले मिलता है, जब राजघराने और समाज को मनोरंजन प्रदान करने के उद्देश्य से इस कला का विकास हुआ। यह माना जाता है कि राजस्थान के इस विशिष्ट समुदाय, जिसे "भाट" और "कठपुतलीकार" कहा जाता है, ने कठपुतली की कला को विकसित किया।

राजपूत शासक अपने दरबार में कठपुतली के प्रदर्शन को एक मनोरंजक साधन के रूप में बढ़ावा देते थे। इन कठपुतलियों के माध्यम से राजा और रानी की वीरता, युद्धों के किस्से, ऐतिहासिक घटनाएं, तथा पौराणिक कथाओं को जनता तक पहुँचाया जाता था। धीरे-धीरे यह कला राजस्थान की पारंपरिक संस्कृति का हिस्सा बन गई और इसके कलाकार एक अनोखी पहचान के साथ उभरने लगे।

कठपुतली का खेल और उसके कलाकार

कठपुतली कला में विशेष प्रकार की लकड़ी और कपड़े का उपयोग होता है। कठपुतलियों को कपड़े और रंग-बिरंगी पोशाकों से सजाया जाता है और एक धागे की सहायता से नियंत्रित किया जाता है। यह धागा ही कठपुतलियों के हाव-भाव और उनके विभिन्न मुद्राओं को नियंत्रित करता है, जिससे वे जीवंत और आकर्षक प्रतीत होती हैं।

कठपुतली के खेल में शामिल कलाकार अपने कठपुतलियों की अद्भुत नृत्य और संवाद के माध्यम से कहानियां प्रस्तुत करते हैं। उनका हर प्रदर्शन एक अलग कहानी बयां करता है, जिसमें प्रेम, वीरता, हास्य और भावनाओं का समावेश होता है। यह कलाकार पीढ़ी दर पीढ़ी इस कला को सीखते हैं और इसे अपनी आजीविका का हिस्सा बनाते हैं।

कठपुतली समुदाय का जीवन और पहचान

राजस्थान के कठपुतलीकारों का समुदाय खासकर उदयपुर, जयपुर, और जोधपुर के आस-पास पाया जाता है। इन समुदायों का जीवन बहुत ही साधारण और संघर्षपूर्ण होता है, लेकिन उनकी कला ने उन्हें एक विशिष्ट पहचान दी है। कठपुतली बनाना और उनका संचालन करना उनके लिए केवल एक पेशा नहीं है; यह उनकी संस्कृति, परंपरा और धरोहर का प्रतीक है।

इस समुदाय के बच्चे छोटी उम्र से ही कठपुतली कला का अभ्यास करते हैं और अपने पूर्वजों की कला को अगली पीढ़ियों तक पहुंचाते हैं। कठपुतलियों को बनाना, उनके लिए कपड़े तैयार करना, और विभिन्न कहानियों के माध्यम से उन्हें मंच पर उतारना उनके जीवन का महत्वपूर्ण हिस्सा है।

वर्तमान समय में कठपुतली कला की स्थिति

आज के आधुनिक युग में कठपुतली कला का पारंपरिक महत्व कम होता जा रहा है। टीवी, फिल्में और अन्य डिजिटल माध्यमों के आगमन के कारण कठपुतली का खेल और उसके कलाकारों का संघर्ष बढ़ गया है। जहां पहले राजघराने और आम जनता इस कला को संजोकर रखते थे, वहीं आज के समय में यह कला धीरे-धीरे विलुप्ति की ओर बढ़ रही है।

हालांकि, कुछ गैर-सरकारी संगठनों और कला प्रेमियों द्वारा कठपुतली कला को पुनर्जीवित करने का प्रयास किया जा रहा है। विभिन्न कला महोत्सवों, विद्यालयों, और पर्यटक स्थलों पर इस कला का प्रदर्शन करवाया जा रहा है। भारत सरकार भी इस कला को संरक्षित करने के लिए कठपुतली कलाकारों को आर्थिक सहायता प्रदान कर रही है।

कठपुतली कला का वैश्विक प्रभाव

राजस्थान की कठपुतली कला को वैश्विक स्तर पर भी सराहा गया है। विदेशी पर्यटक और कला प्रेमी इस कला को विशेष आकर्षण का केंद्र मानते हैं। कई कठपुतलीकार समुदाय के कलाकारों ने विदेशों में भी अपनी कला का प्रदर्शन किया है, जिससे राजस्थान और भारत की सांस्कृतिक पहचान को एक नई ऊँचाई मिली है।

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