Baharda village of Karauli: राजस्थान के करौली जिले का बहरदा गांव संवत 1078 में बसाया गया था। मंडरायल रोड पर स्थापित इस गांव में अनूठे पत्थरों से हवेलियों, चौपाल, झरोखे पर अनोखी नक्काशी बनाई गई हैं। इस गांव की खास बात यह है कि इस गांव ने अपने व्यापार के दम पर ही अपना एक अलग साम्राज्य बनाया था। आज भी यहां के लोग इसकी गवाही देते हैं। जिले का डांग क्षेत्र समेत अन्य इलाके भी इसके ऋणी रहे हैं। इसी कारण से इस गांव को धनकुबेरों का गांव भी कहा जाता है।
आमजन से लेकर राजा रह चुके हैं ऋणी
इस गांव ने जरूरतमंदों से लेकर राजा-महाराजाओं को उधार दिया हैं। इसका प्रमाण यहां की हवेलियों और तत्कालीन कुओं की बनावट से पता चलता हैं। इतिहासकारों के मुताबिक करौली रियासत हमेशा से आर्थिक तंगी से गुजरी है। यहां तक की रियासत के एक छोटे राजा जो हाड़ौती के महाराव हुआ करते थे, उनकी बेटी की शादी में भी इस गांव के बोहरों ने आर्थिक मदद की थी।
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धन भरने के लिए थी गुप्त तिजोरियां
इस गांव के हर घर में धन भरने के लिए गुप्त तिजोरियां बनाई गई थी, उन्हें खोलने का तरीका केवल वहां के बोहरों को पता था। तिजोरियों का निर्माण भी खास पत्थरों से किया गया था। इस गांव में दूध घी भी भारी मात्रा में हुआ करती थी, जिसे रखने के लिए भी बड़े बड़े बॉक्स बनाए गए थे। यहां के धनी व्यापारियों ने बड़ी-बड़ी हवेलियां व ऊंची ऊंची इमारतें बनाई थी।
हाथी व घोड़े को रखने के लिए बनाए गए थे बाड़े
इस गांव को उस समय का बैंक माना जाता था, जहां लोग आकर लोन लिया करते थे। करौली रियासत के सिक्के आज भी देशभर में जाने जाते है। यहां के लोग हाथी और घोड़ों को रखने के लिए बाड़े भी बनाया करते थे।