Eid 2025: राजपूताना के जीवन इतिहास में टोंक जो की एक मात्र मुस्लिम राज्य है, अपने अनोखे और भव्य ईद जुलूस के लिए जाना जाता था। शाही धूमधाम और सांस्कृतिक वैभव से सरोवर यह त्यौहार समुदाय के बीच एकता की शक्ति के रूप में भी काम करता था।
शाही रस्में
टोंक में नवाब साहब जब उठा करते थे तो एक गोला दागा जाता था और जब भी नहाने की तैयारी करते थे तो किले से तोपें दागी जाती थी। सजे धजे हाथियों पर सवार होकर जब नवाब साहब भव्य ईद जुलूस पर निकलते थे तो तोपों की गड़गड़ाहट से उनके जाने की घोषणा करी जाती थी और सभी निवासी एक साथ जश्न मनाने के लिए इकट्ठा होते थे।
किला मोहल्ला से शुरू होकर ईदगाह बहीर पर समाप्त होने वाला यह जुलूस काफी शानदार हुआ करता था। राज्य के प्रतीक चिन्ह से सजे हुए ऊंट, घुड़सवार, हाथी, पालकी और पारंपरिक पोशाक पहने हुए सैनिक और परिवार के सदस्य टोंक की सड़कों को त्योहार के रंग से रंग देते थे।
खुशी का त्यौहार
तोपों की आवाज दोहरी भूमिका निभाती थी। इन तोपों की आवाज से न केवल नवाब के दिन की शुरुआत होती थी या फिर उनके जाने की घोषणा का पता चलता था बल्कि इसी के साथ ही ईदगाह पर ईद की नमाज की शुरुआत और समाप्ति का भी संकेत दिया जाता था। ईद के त्यौहार के दौरान हिंदू और मुसलमान दोनों समुदाय के लोग उत्साह की भावना साथ लिए उत्सव में एक साथ शामिल होते थे।
नवाब साहब लोगों के मनोरंजन के लिए अनेक तरह के खेलों का आयोजन किया करते थे। जैसे की तीरंदाजी, तलवारबाजी, कुश्ती, कबड्डी और साथ ही क्रिकेट भी।
टोंक की ईद की भव्यता
सैयद मंजूरूल हसन बरकाती साहब ने अपनी पुस्तक टोंक की जश्न ईद में 1946 की ईद का एक जीवंत प्रत्यक्ष दर्शी विवरण दिया है। उन्होंने जुलूस की भव्यता नवाब के प्रति लोगों की श्रद्धा और समुदाय की हर्ष और लाख पूर्ण भागीदारी को बखूबी दर्शाया है।
ये भी पढ़ें:- CM Bhajanlal Sharma: कोटा के छात्रों को सीएम का बड़ा तोहफा, 1.25 लाख पदों पर नई भर्ती की घोषणा