Rajasthan Tourism: जोधपुर, जो अपने ऐतिहासिक किलों और नीले घरों के लिए मशहूर है, अब एक अनोखी बागवानी का गवाह भी बन चुका है। यहां के मेड़ती गेट क्षेत्र में स्थित 'गोकुल- द वैली ऑफ फ्लावर्स' नामक गार्डन ने न केवल देशी बल्कि विदेशी सैलानियों को भी अपनी ओर आकर्षित किया है। इस बागीचे में 7000 पौधों का खजाना है, जिसमें रंग-बिरंगे फूलों के साथ-साथ हर्बल पौधे भी शामिल हैं।
रवींद्र काबरा का अनोखा सफर
इस बाग़ीचे के पीछे की प्रेरणा रवींद्र काबरा हैं, जो अपने दादा गोकुलचंद्र काबरा की याद में इसे स्थापित करना चाहते थे। काबरा का बागवानी का यह सफर तब शुरू हुआ जब वे 10 वर्ष की उम्र में अपने दादा के साथ बगीचे में जाते थे। उन दिनों में उन्होंने न केवल बागवानी के गुण सीखे, बल्कि एक विशेष बंधन भी स्थापित किया।
उन्होंने इस गार्डन का नाम 'गोकुल- द वैली ऑफ फ्लावर्स' रखा ताकि उनके दादा की स्मृति हमेशा जीवित रहे।
बाग़ीचे की विशेषताएं
'गोकुल- द वैली ऑफ फ्लावर्स' में विभिन्न प्रकार के पौधे हैं, जिनमें हॉलेंड के ट्यूलिप, 250 प्रजातियों के गुलाब, अडेनियम, लीलियम, आइरिस, और कई औषधीय पौधे जैसे दालचीनी, तेजपत्ता और तुलसी शामिल हैं। यहां के खुशबूदार पौधे जैसे स्वर्णचंपा, जूही और मोगरा इस बाग़ीचे की सुंदरता को और बढ़ाते हैं। काबरा ने इन पौधों को देश-विदेश से मंगवाया है, और प्रतिदिन सुबह 7 बजे से 11 बजे तक वे इनकी देखभाल करते हैं।
काबरा का उद्देश्य केवल बागवानी करना नहीं है, बल्कि वे लोगों को नि:शुल्क बागवानी भी सिखा रहे हैं। वे बागवानों के साथ मिलकर काम करते हैं ताकि वे अपनी अनुभवों को साझा कर सकें। उनका मानना है कि "कोई भी पौधा मरना नहीं चाहिए," और इस सोच के साथ वे अपने बाग़ीचे की देखभाल करते हैं।
जीवन में पौधों का महत्व
काबरा के लिए ये पौधे सिर्फ फूल या पौधे नहीं, बल्कि उनकी संतान की तरह हैं। उनका गहरा आत्मीय लगाव इन पौधों से इस बात को साबित करता है कि प्रकृति के प्रति प्रेम और देखभाल से ही एक सफल जीवन का निर्माण होता है।